शनिवार, 23 अप्रैल 2011

भगत जी --- 2

 अपनी पीठ पर थपकी देने वाले को देखने के लिए जब मैं घूमा तो मैंने अपने सामने, ग्रीक शिल्प को मात देती सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति, एक गरिमामयी स्वर्ण-वर्णा नारी को खडा पाया, आसमानी रंग की शिफोन की साडी में लिपटी वो प्रसन्न-वदना अपनी झील सी गहरी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे अपलक निहारती मन्द-मन्द मुस्करा रही थी.

मैं आवाक खडा अपने सामने खड़ी उपरवाले की बनायी उस बेजोड़ मूरत को अभी ठीक से निहार भी नहीं पाया था कि वो सुन्दरी कोयल सी कूकती बोल उठी,'' प्रसाद लीजिये ,बेसन के लड्डू शायद आपको अभी भी अच्छे लगते होंगे ?''.


मेरे दिमाग में जैसे बिजली सी कौंध गयी,'' अरे !!!, भगत जी !!, तू !!!'', मेरे मुंह से जैसे ये शब्द अपने आप ही निकल पड़े. 


 '' हाँ मैं ! भगत जी ,    और तू ?   ,          मुन्ना ?,        ठीक पहचाना ना ? ''


और हम दोनों भीड़ से बेखबर एक दूसरे से लिपट गए.


फिर दूसरे ही पल भगत जी आहिस्ता से मेरी बांहों से अलग होती हुई बोली,
'' मेरे परिवार से मिलो ''.


इस से पहले की वो परिचय की प्रक्रिया आगे बढ़ाती एक नवविवाहित जोड़ा मेरे क़दमों में झुका.


  '' ये हैं मेरा छोटा बेटा राज किशोर  , और उसकी पत्नी, कमला, इनकी शादी रात को ही हुई है, पर अम्मा चाहती थी कि घर लौटने से पहले एक बार हनुमान जी के ढ़ोक दे कर चलें , इसलिए आज बहू की विदाई  कराकर सीधे घर की तरफ ना जाकर , सारी बारात सहित पहले यहाँ आये और हनुमान जी की लीला देखो कि उनके दर्शन करके निकले और तेरे से मुलाक़ात भी हो गई ''.


'' और तेरा बड़ा बेटा और तेरे पति देव , क्या उनसे नहीं मिलवाएगी ?और इनसे भी मिलो, ये मेरी धर्मपत्नी और ये मेरे बेटा-बेटी.'' मैंने कहा .


भगत जी ने बड़े प्यार से दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेरा और फिर लपक कर आगे बढ़ी और मेरी पत्नी के गले से लिपट कर ऐसे मिली जैसे बहुत पुरानी जान-पहचान हो ,'' भाभी , आज ख़ुशी के मौके पर भगवान् की बहुत कृपा हुई है , सिर्फ मेरा भाई ही नहीं उसका पूरा परिवार मिल गया है ''.उसने अपनी भीग आई आँखें पोंछते हुए कहा .


 '' मम्मी , सब बस में बैठ गए हैं , आप लोग भी चलिए  ''. कहता हुआ एक नौजवान हम लोगों तक पहुंचा .


'' चलते हैं ,पहले तू मामा-मामी के पाँव छू और उनका आशीर्वाद ले,भाभी,ये मेरा बड़ा बेटा है , चन्द्र शेखर मिश्रा ''. भगत जी ने मेरी पत्नी को संबोधित करते हुए नौजवान का परिचय करवाया.


मेरे चेहरे पर उभरे हैरानी के भावों को पढ़ कर भगत जी हँसते हुए बोली,  ''देख भाई , अभी ज़्यादा कहने सुनने का मौका नहीं है, वो सामने पार्किंग में दोनों बसें और कार खड़ी हैं ना , उनमें सारे रिश्तेदार और दूसरे बाराती बैठे हम लोगों का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं , आगे पूरे चार घंटे का सफ़र पडा है और सब को घर लौटने की जल्दी है,बाद में जल्दी मिलूंगी ,और फिर विस्तार से सारी बातें करूंगी ,  अभी अपना घर का पता और फोन नंबर लिख दे ''. कहते हुए भगत  जी ने अपने पर्स में से निकालकर एक छोटी सी डायरी और पैन मेरी तरफ बढ़ा दिया . 


'' भाभी , मैं बहुत जल्दी आपके पास आऊंगी अभी आज्ञा दीजिये '', कहते हुए भगत जी एक बार फिर मेरी पत्नी के गले मिली मेरे हाथों से डायरी निकाली और इस से पहले कि हम पति-पत्नी कुछ समझते या कुछ कहते वो हमारे दोनों बच्चों के हाथों में जबरदस्ती कुछ नोट ठूंस कर नव-विवाहित जोड़े के साथ हनुमान-मंदिर की  पार्किंग कि तरफ तेज़ी से बढ़ गयी.


बाईस साल बाद ये कैसी तूफानी मुलाक़ात थी , जो ना जाने कितने अनसुलझे प्रश्नों का बोझ मेरे दिमाग पर छोड़ मुझे झकझोर गई थी.


'' ये तो बहुत पैसे हैं जी , दोनों बच्चों को पांच-पांच सौ रूपये दे गई हैं, और ये थीं कौन ,मैं तो इन  ननद जी को पहचानी भी नहीं ?''


'' बताऊंगा, अभी तो घर चलो ,घर चल कर सब बताऊंगा,'' कहते हुए मैं पार्किंग कि तरफ चल पडा जहां मेरा लेम्ब्रेटा स्कूटर खडा था. 


घर पहुँचते ही श्रीमती जी भगत जी के बारे में जानने के लिए बेचैन  हो उठीं. 


मैंने उन्हें भगत जी के गायब होने तक की सारी कहानी विस्तार पूर्वक सुनाई , और कहा , '' उसके बाद भगत जी के बारे में मुझे कभी कुछ नहीं मालूम हुआ और आज ना जाने कहाँ से ये अचानक प्रकट हो गई ,और वो भी पूरे परिवार के साथ ''.


 सारा किस्सा सुनकर भगत जी के अज्ञात काल-खण्ड के बारे में जानने की  श्रीमती जी की उत्सुकता मेरी अपनी उत्सुकता से ज़रा भी कम नहीं थी.
 
 मैं वाँछित टेलीफोन काल का इंतज़ार करता रहा, पंद्रह दिन बीत गए , पर ना कोई खबर और ना ही कोई संदेशा . 


आफिस से लौटकर घर में घुसते ही मैं धर्मपत्नी से प्रतिदिन पहला प्रश्न यही करता,   '' कोई संदेशा आया ?''.   '' कोई फोन आया ? ''  


पर हमेशा उत्तर नकारात्मक ही होता था.


कुछ दिन बाद तो धर्मपत्नी ने मेरे बिना पूछे ही गर्दन हिलाकर मेरी निराशा में वृद्धि  करनी  शुरू कर दी .


पंद्रह दिन बाद ,   उस दिन मैंने धर्मपत्नी से ना तो कुछ पूछा और ना ही उत्सुक निगाहों से उसकी तरफ देखा .


मैं जूते उतार कर , पैर लम्बे कर थकावट  मिटा रहा था जब धर्मपत्नी ने पीने के लिए पानी का गिलास मेरी तरफ बढाते हुए कानों में मिश्री सी घोलता संदेशा दिया , '' आज दोपहर में भगत जी बहन जी का फोन आया था , आज ही दिल्ली लौटी हैं , उन्होंने अपना फोन नंबर भी दिया है, आपको आते ही फोन करने को कहा है ''. कहते हुए धर्मपत्नी ने जहां भगत जी का फोन नंबर लिखा था उस पृष्ठ को खोलते हुए मुझे फोन नंबरों वाली  डायरी पकड़ाई .


मैंने झपट कर डायरी धर्मपत्नी के हाथों से छीन ली , जैसे एक पल की देरी  में ही  नम्बर गुम हो जाने का ख़तरा हो .


मैंने फोन अपनी तरफ खींचा और उस पर जल्दी-जल्दी भगत जी का नंबर पन्च करने लगा.


तीन घन्टी के बाद दूसरी तरफ से फोन उठाया गया, 


'' दिस इज मिश्राज़ हाउस, हू इज स्पीकिंग प्लीज़ '' ? 


दक्षिण भारतीय लहजे में एक नारी स्वर उभरा.


'' क्या मैं मिसिज़ मिश्रा से बात कर सकता हूँ '' ?  मैंने पूछा 


'' आप कौन बोलता है ''?


'' अरे बाबा तुम मिसिज़ मिश्रा को बुलाओ , उनको बोलो कि मुन्ना बाबू का फोन है ''. मैंने बड़ी बेसब्री से उसको कहा.


'' नमस्कार सर , आप जनकपुरी से बोलता '' ?


'' हाँ '' मैंने बड़े धैर्य से उत्तर दिया .


'' आप के वास्ते मैडम मैसेज छोड़ा , अभी मैडम शेखर बाबा के साथ एक बहुत ज़रूरी काम से गया , वापस आने को बहुत देर होता , अभी सन्डे तक मैडम चार दिन छुट्टी पर इधर घर में ही होएंगा , आप फोन करके अपनी फैमिली  के साथ आओ, ऐसा करके बोला , आप कुछ कहना है '' ?


'' नहीं '' मैंने बड़े बुझे मन से उत्तर दिया .


'' आप इधर का एड्रेस नोट करना माँगता '' ?


'' हाँ ,एड्रेस बोलो '' , मैं उस औरत की मन ही मन तारीफ़ करता बोला , मैं तो इतनी ज़रूरी बात पूछना ही भूल गया था.


उसने एड्रेस नोट करवाया , एड्रेस कमला नगर का था.


भगत जी का संदेशा मिलने  से, मन में, जो आनंद की लहर उठी थी वो ना जाने क्यों , एकदम झाग की तरह बैठ गयी. मैं बच्चों की तरह व्यवहार कर रहा था.


अगले दिन सुबह मैं अभी फोन कुछ देर बाद करने के बारे में सोच ही रहा था की फोन की घंटी बज उठी .


फोन भगत जी का ही था .


मैंने बिना औपचारिकताओं का लिहाज किये बोलना शुरू कर दिया ,                '' कमाल   है  भाई  , खुद ही फोन करने को कहती हो और फिर खुद ही गायब भी हो जाती हो ,अच्छा तरीका है !


'' आराम से भाई ,आराम से , मुझे बाद में पता चला , हमारे पीछे इन्हीं दिनों मेरे एक सहकर्मी की मृत्यु हो गयी थी ,तो मैं और शेखर उनके घर चले गए.
वो लोग लाजपत नगर रहते हैं ,दो घंटे तो आने-जाने में ही लग जाते हैं,इसीलिए मैं तेरे लिए सन्देश छोड़ गयी थी '', भगत जी मुझे समझाते हुए बोली .


'' पर ये सब इतने विस्तार से तेरी उस अंग्रेज़ ने तो बताया नहीं .'' 


भगत जी अपनी चिर-परिचित खिलखिलाहट बखेरते हुए बोली , '' वो मैगी थी , उसे फोन पर अंग्रेजी झाड़ने का बहुत शौक है , कहती है , इससे रौब पड़ता है. ''  


'' अब ये मैगी कौन हुई ? ''  मैंने पूछा 


'' मैगी , यानी मारग्रेट , हमारे घर की  पीर , बाबर्ची , भिश्ती , खर '', अब क्या सारी पंचायत यहीं फोन पर करेगा ? , घर नहीं आयेगा ? , अच्छा छोड़ ,तू ऐसा कर कि आज ही भाभी और बच्चों को लेकर इधर आ जा , फिर आराम से बैठकर एक-साथ खाना खायेंगे और ढेर सारी बातें भी करेंगे.'' भगत जी ने बात का जैसे पटाक्षेप सा करते हुए कहा .


औपचारिकता की तो कोई गुंजाइश थी ही नहीं और फिर मैं तो वैसे भी उससे मिलकर सारे हालात जानने को जैसे मरा ही जा रहा था ,सो मैंने तुरन्त  हाँ करदी .


ग्यारह बजे हम भगत जी के घर की घंटी बजा रहे थे.


दरवाज़ा एक दक्षिण भारतीय महिला ने खोला , '' हैल्लो , वैलकम सर ----''  


'' कौन है मैगी ? '' कहते हुए भगत जी आँगन में प्रकट हुई . '' अरे मुन्ना !,
भाभी  ! , आओ , आओ , '' कहती वह आगे बढ़ी और श्रीमती जी को अपने आलिंगन में भर  घर के अन्दर की ओर चलने को हुई कि उसकी निगाह दोनों बच्चों पर पड़ी जो अभी भी बाहर ही खड़े सकुचा रहे थे , भगत जी ने श्रीमती जी को छोड़ा और दोनों बच्चों के पास पहुँची .


'' मैगी , ये देखो हमारे वी . आई . पी . गैस्ट तो बाहर ही खड़े हैं ,दोनों बच्चों पर अपना प्यार ऊँडेलती , भगत जी , पिंकी और लक्की को अपनी बाहों में लपेटे  घर के अन्दर की और बढ़ी . 


बाहर की तपती गर्मीं से आकर  ए . सी . से ठंडा किया हुआ विशाल ड्राइंग-रूम बड़ा  सुखद और आराम-दायक लगा .  


शीतल पेय और दूसरी औपचारिकताओं के बाद भगत जी ने बच्चों से कहा, '' अब तुम दोनों मैगी आंटी के साथ दूसरे कमरे में जाओ ,  वो तुम्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ  सुनाएगी और तुम्हारे साथ बहुत बढिया गेम्ज़ भी खेलेगी ,तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा ''.    


पिंकी और लक्की हामी में सर हिलाते मैगी के साथ हो लिए .


'' ये मैगी कौन है , भगत जी ? '' बच्चों के साथ कमरे से बाहर जाती मैगी की ओर देखते हुए मैंने पूछा .


'' ये सवाल तूने फोन पर भी पूछा था , याद होगा मैंने तब भी कहा था कि मैगी हमारे घर की  पीर , बाबर्ची , भिश्ती ,खर  यानी सब कुछ है , मेरे संघर्ष के दिनों में इसने अपनी समझदारी और नेकनीयती  से मुझे हमेशा आगे बढ़ते रहने का और बुरी से बुरी  परीस्तिथि में भी संघर्ष करने का हौसला दिया , ये मेरी  दोस्त , बहन  , गुरु , हमदर्द और ना जाने क्या-क्या है  , ये शेखर की भी प्रिय दोस्त , माँ  और गुरु है .बचपन से इसकी गोद में पला शेखर मेरे से ज़्यादा मैगी के साथ अधिक जुड़ा है .  इसलिए ये इस घर की पीर है . घर के सारे खर्चों का हिसाब-किताब ,  इस घर की रसोई में कब क्या बनेगा , घर में कहाँ-कहाँ क्या करना है ,किसके लिए क्या लाना है और यहाँ तक कि जब घर में  काम करने वाली नौकरानी गायब हो जाए तो कैसे गाने गाते-गाते घर की साफ़-सफाई भी फ़टाफ़ट करनी है ये सब कुछ मैगी ही जानती  है , यानी मैगी आल इन वन है , इसलिए ये घर और इस घर के लोग पूरी तरह से मैगी पर निर्भर हैं . मैगी कैसे मेरे जीवन में आई ,ये कौन  है ये सब बातें एक लम्बी कहानी का हिस्सा हैं  जो मैं तुम्हें बाद में बताउंगी''. भगत जी ने विस्तार से मेरे सवाल का जवाब दिया .


'' पर बाद में में कब भाई , अभी क्यों नहीं ? मैंने उतावले स्वर में पूछा .


'' बताती हूँ ,सब कुछ अभी बताती हूँ  , ज़रा सब्र कर कहती हुई भगत जी श्रीमती जी के पास बड़े सोफे पर आन बैठी और उनके गले में बाहें डाल बड़े अपनत्व भरे स्वर में बोली , '' भाभी , जब से हनुमान मंदिर में आप लोगों से मुलाक़ात हुई है , मैं सिर्फ मुन्ना और आप लोगों के बारे में ही सोचती रही हूँ ,उस दिन हनुमान मन्दिर में मुन्ना अचानक ही  मिल  गया, एक पल में ही मेरे सामने जैसे मेरा सारा अतीत ही घूम गया , मैं आप को बता नहीं सकती कि मैं आप लोगों से दोबारा मिलने को और मिल कर सारी बातें करने  को कितनी बेताब थी . 


'' मैं आपकी मनःस्तिथि  अच्छी तरह समझ सकती हूँ  ,उस दिन मंदिर में आपसे मुलाक़ात होने के बाद पहली बार आपके बारे में इनसे सारी बातें मालूम हुईं  और तभी से  हम दोनों भी रोजाना सिर्फ और सिर्फ आपके बारे में ही बातें करते रहे हैं और इस बीच की सारी कहानी जानने को उत्सुक रहे हैं  , जब हम दोनों सारी बातें विस्तार पूर्वक जानने के लिए उस दिन से इतने अधिक उत्सुक रहे हैं तो आप कितनी आधिक व्याकुल हो रही होंगी 
ये मैं अच्छी तरह से समझ सकती हूँ  '', श्रीमती जी भगत जी का हाथ अपने हाथों में लेती हुई बोलीं .


'' बाकी बातें बाद में , पहले आप मुझे एक बात बताओ की मुन्ने ने मेरे और अपने बारे में जो बातें आपको बताईं , उनमें लड़कों की बजाये लड़कियों वाला पहला व्यवहार मैंने इसके साथ कब और क्या किया था , क्या इसने आपको बताया ? एक लड़के और एक लड़की के बीच का ये रिश्ता हम दोनों के बीच की बहुत बड़ी सीक्रेट रहा है .'' शरारतपूर्ण मुस्कुराहट के साथ  मेरी तरफ देखते हुए भगत जी ने कहा .


उसकी इस बात पर   चौंक कर श्रीमती जी मेरी तरफ प्रश्नपूर्ण निगाहों से देखने लगीं .




{ सबसे पहले तो  मैं  दूसरी कड़ी की  प्रस्तुति  में मेरे द्वारा की गई देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ,आगे की कड़ी समयानुसार प्रस्तुत कर सकूं इसका ध्यान रखूंगा .आप इस कड़ी को भी पहले भाग की तरह सराहेंगे इस विश्वास के साथ  इसे पेश कर रहा हूँ , कृपया अपने अमूल्य दृष्टिकोण से भी परिचित करा दिया कीजिये . धन्यवाद , --उपेन्द्र  }