रविवार, 21 अगस्त 2011

भगत जी---3

    भगत जी कि बात से चौंकी  हुई श्रीमति जी की तरफ़् देखते हुए अपनी अनभिज्ञता जताते हुए मैने अपने दोनों  कन्धे उचका दिये .    

'' चौंकिए मत और ना ही परेशान होइए , जो बात मुन्ना ने आपको नहीं बताई ,वो मैं आपको बताती हूँ ,  जैसा कि आपको मुन्ना ने भी बताया होगा , मैं लड़का नहीं ,लड़के के रूप में एक लड़की हूँ , ये बात मुन्ना को कालेज में तीसरे  दिन पता चली  थी ---- '', भगत जी ने अपनी बात आगे बढाते हुए कहना शुरू किया .


'' हाँ , ये तो मुझे मालूम है , इसमें ख़ास बात क्या है ? '' श्रीमती जी ने भगत जी को बीच में ही टोकते हुए कहा .


  '' अरे बाबा , आप ख़ास या आम का चक्कर छोडिये और आराम से पूरी बात सुनिए '', भगत जी ने हँसते  हुए कहा ,और अपनी बात आगे बढाते हुए बोली ,  '' मेरी असलियत मालूम होने के बाद उस दिन मुन्ना बाकी का सारा दिन गम-सुम सा ही रहा .मैं देख रही थी कि वो अपने-आप में ही कहीं खोया हुआ था ,उसका मन आधी-छुट्टी के बाद की किसी भी क्लास में नहीं लगा.मुझे उस पर बहुत तरस सा आया.मैं भी बार-बार , सदा मुस्कराते रहने वाले, उसके उस दिन बुझे हुए चेहरे को ,देख-देख कर परेशान होती रही .


   छुट्टी के बाद जब मैं खुद उसके पास गई और उसे लड्डू वाली  बात कही तो वो छोटे बच्चों की तरह तुरंत खुश हो गया , कालेज से लौटते समय सारे रास्ते वो रोज़ की तरह हंसता-खेलता ख़ुशी-ख़ुशी आया .
   क्लास में वो उदास था , क्योंकि वो डर गया था की कहीं वो मुझे और मेरी दोस्ती को खो ना दे ,पर अब जब वो जान गया कि मैं अभी भी उसके साथ बिना किसी नाराजगी के वही पहले जैसा सहज व्यवहार कर रही हूँ तो वो तुरन्त खुश  हो गया . जैसे रोता हुआ बच्चा अपनी मन चाही चीज़ मिल जाने पर  रोते-रोते अचानक हंसने लगता है . मैंने महसूस किया  कि मुन्ना एकदम एक निश्छल बच्चे की तरह ही था .
     उस रात बहुत देर तक मैं  कालेज में हुई सारी घटना और उसकी वज़ह से परेशान हाल मुन्ना के बारे में ही सोचती रही ,ना जाने कितनी देर इन्हीं ख्यालों में खोया मेरा बालक मन अचानक बाल-पन को पीछे छोड़ समझदारी की बातें सोचने लगा  और उस रात पहली बार मेरे अन्दर की लड़की जाग उठी  .
अगले दिन आधी छुट्टी में खाना खाने के बाद जब हमारी क्लास के बाकी के सारे लड़के-लडकियां क्लास रूम से बाहर चले गए तब मुन्ना  को मैंने क्लास में ही रोक लिया और इससे पहले की यह कुछ समझ पाता मैंने अपने बस्ते में से मौली का  एक टुकडा निकाला और इसकी दायीं कलाई पर 
बाँध दिया .
ये बुद्धू कभी अपनी कलाई पर बंधी मौली को देखे कभी मुझे .
देखता क्या है ? , ये राखी है , तू जानता है ना की मैं तेरे से डेढ़ साल बड़ी हूँ  , तो अच्छी तरह से समझ ले, कि आज से मैं तेरी बड़ी बहन हूँ और तू मेरा छोटा भाई, मैंने इसकी नाक पकड़ कर हिलाते हुए कहा .
और भाभी मेरे छोटे भैया ने  अपनी जेब से निकाल कर अपनी जेब-खर्ची का   दस पैसे का सिक्का खट्ट से मेरे हाथ पर रख दिया  .
मैंने इसे समझाया कि इस बारे में कभी किसी को मत बताना और हमेशा मुझे भगत जी ही कह कर बुलाना , और हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी बेसन के लड्डू खाने चले गए .उस दिन लड्डू , इसे मैंने खिलाये .
पूरे चार साल अपने घर में राखी बन्धवाने के बाद ये चुपचाप हमारी गली में आ जाता और चुपके से मेरे से राखी बन्धवाता और भाग जाता .
लड़के-लडकियां छुप-छुप कर प्यार तो करते हैं  पर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को यूं छुप-छुप कर हम दोनों ही निभाते रहे .
एक मिनट रुको '',कहती हुई भगत जी  उठ कर अन्दर कमरे में चली गयी .
जब वो लौटी तो उसके हाथ में एक बहुत खूबसूरत लाल रंग की थैली थी .


भगत जी ने वो थैली मेरे हाथ में पकड़ा दी और  मुझे बोली , '' इस थैली में पिछले इक्कीस सालों की इक्कीस राखियाँ हैं , हर साल तेरी लम्बी उम्र की दुआ मांगती मैं तेरे लिए सुन्दर से सुन्दर राखी बाज़ार से लाती और सारा दिन उसे मंदिर में रख कर उसे इस थैली में संभाल कर रख देती ,इस विश्वास के साथ कि एक ना एक दिन तू मुझे ज़रूर मिलेगा और जिस दिन  तू मुझे मिलेगा मैं ये सारी राखियाँ तुझे सौंप दूँगी , ले संभाल अपनी राखियाँ और मुझे मेरे  इक्कीस दस पैसे के सिक्के दे '' .


मैंने हौले से थैली खोली . 


थैली में ज़री और सिल्मे - सितारों वाली राखियाँ भरी थीं . मैंने थैली में हाथ डालकर राखियाँ बाहर निकाल लीं .कुछ राखियों को छोड़ बाकी अभी भी झिलमिला रही थीं .


मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था , क्या कहूं ? क्या ना कहूं   ? 


बस चुपचाप बैठा राखियों को ही उलट-पुलट रहा था और मेरी आँखें भर-भर आ रही थीं.


भगत जी ने अपना हाथ मेरे सर पर प्यार से फेरा और मेरे  सर पर आशीर्वाद भरा चुम्बन अंकित कर दिया .


मेरी धर्मपत्नी ने फुर्ती दिखाते हुए सौ-सौ के इक्कीस नोट भगत जी को देने के लिए मेरे हाथ में रख दिए .


मैंने जब वो नोट भगत जी को देने चाहे तो वो बोली,'' मैं ये रूपये नहीं लूंगी, देना है तो वही दस पैसे वाले इक्कीस सिक्के दे दे , जो हमेशा दिया करता था , मैं ख़ुशी-ख़ुशी ले लूंगी .''


 '' पर जीजी , तब आपका भाई आज की तरह कमाता कहाँ था , अब तो ईश्वर की कृपा से और आपके आशीर्वाद से ये फर्स्ट-क्लास गजेटेड आफिसर हैं और खूब अच्छा-खासा कमा भी रहे हैं , भाई से लेना तो आपका हक है , इसलिए इसे लीजिये और आशीर्वाद दीजिये कि आपके भाई की और तरक्की हो और वो आपको और अधिक देने के लायक बने .''  धर्मपत्नी ने भगत जी के पाँव छू कर  नोट उन्हें पकड़ाते हुए कहा .  


 '' मेरा तो रोम-रोम सदा इसे आशीर्वाद् देता है ,  मेरा भाई और उसका पूरा परिवार  सदा स्वस्थ रहे  , खुश रहे  , दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की करे '' हम दोनो को अपने आलिङ्गन में भर कर चूमते  हुए भगत जी ने कहा .


हम दोनों ने भगत जी के एक बार फिर पाँव छुए और अपने अपने स्थान पर बैठ गए .


  '' भाभी , आप कहो तो पहले खाना खा लें , फिर आराम से बैठकर बातें करेंगे . '' भगत जी ने हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा .


 '' एक मिनट जीजी , ये क्या तरीका हुआ भला , आप बड़ी ननद होते हुए भी मुझे आप-आप कह के बुला रही हो , सीधे-सीधे बड़ी ननद के अधिकार से मुझे  मेरे नाम से यानि ज्योति कहकर बुलाइए न .'' मेरी धरमपत्नी अब भगत जी से पूरी तरह घुल-मिल गई थी और बहुत खुश नज़र आ रही थी . 


  '' ठीक है बाबा , अब से मैं तुझे ज्योति ही कह कर बुलाऊंगी , चल अब पहले चल कर खाना खाते हैं , वरना मैगी नाराज़ हो जायेगी , कहेगी बातों से ही पेट भरना था तो खाना क्यों बनवाया था ,वगैरह वगैरह --''


    '' ठीक है जीजी , चलिए पहले पेट पूजा-पीछे काम दूजा , '' कहते हुए श्रीमती जी भगत जी के साथ हो लीं और मैं उन दोनों के पीछे-पीछे डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा . 


'' अच्छा भगत जी ,ये तो बताओ कि घर के बाक़ी लोग कहाँ हैं , कोई नज़र नहीं आ रहा  ? '' , मैंने एक कुर्सी अपनी तरफ खिसकाते हुए कहा .


       '' राज किशोर कल शाम को अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल गया है , फेरा डलवाने की रस्म के लिए और चन्द्र शेखर अपनी गाडी लेकर सुबह से निकला है , कह रहा था उसने किसी से बहुत ज़रूरी काम के सिलसिले में मिलना है , अपनी मीटिंग के बाद  चन्द्र अपने भाई-भाभी को लेने के लिए जाएगा और फिर वोलोग राज की ससुराल से ही सीधे नईदिल्ली स्टेशन चले जायेंगे , जहां से शाम को राज और कमला  ट्रेन से  जम्मू के लिए रवाना होंगे , आगे काश्मीर जाने के लिए . तुम लोगों से चन्द्र स्टेशन से लौट कर ही मिलेगा . '' भगत जी ने सारा विवरण सविस्तार बताते हुए कहा .


मैगी बच्चों को लेकर आ गयी . सबने मिलकर मैगी के हाथ का बना स्वादिष्ट खाना खाया और आराम से वापिस आकर ड्राइंग रूम में बैठ गए .


दोनों बच्चे मैगी के साथ खुश थे .


   भगत जी ने खुद ही कहना शुरू किया  , '' मैं जानती हूँ तुम दोनों मेरी पिछले बाईस साल की पूरी कहानी जानने को बहुत उत्सुक हो , मैं भी पिछले बाईस साल से अपने अन्दर ही अन्दर घुट रही हूँ , पूरी बात कभी किसी से नहीं कह सकी. ना बाबा से ना अम्मा से , एक ये मैगी है जिसके आगे रह-रह के दुखड़े रोती रही हूँ , पर ये भी बेचारी किस्मत की मारी ही है , सो जितना होता दोनों एक-दुसरे के आगे रो लिया करते और एक दुसरे को संभालने की कोशिश भी करते रहते . ''


बोलते-बोलते भगत जी अपने अतीत में खो गयी और फिर संभल कर सारी कहानी दोहराने लगी .


भगत जी ने जो कुछ भी बताया उसे मैं अपने तरीके से बताने की कोशिश करूंगा .