मंगलवार, 24 नवंबर 2015

                                                                              
                                                                                ॐ 

        

दोस्तों आजकल हमारे प्रिय देश में एक ख़ास तरह की हवा बहने लगी है और खतरनाक बात ये है कि ये हवा एक आंधी का रूप लेना शुरिु कर रही है। इससे पहले कि ये झूठ का अन्धड़ हमारे समाज को अपनी काली चादर में लपेट ले हमें सारी परिस्थिति को  अच्छी तरह से समझ लेना होगा ताकि समाज के दुश्मनों द्वारा  देश की विकास की नयी हवा की लहर को रोकने की साजिश सफल ना हो सकेऔर विकास की हवा की लहर के  झोंके  ठीक से देश के हर कोने को सुवासित कर सकें।
बिहार चुनाव के दिनों में देश में अवार्ड लौटाने का ड्रामा खूब सफलता से खेला गया था। अखबारों और टी वी पर भी इस ड्रामे ने खूब तहलका मचाया था। बिहार चुनाव ख़त्म होते ही अचानक ये ड्रामा भी ख़त्म हो गया था।

 लेकिन अब क्योंकि संसद का शीतकालीन अधिवेशन शुरू हो रहा है और दुर्भाग्यवश कांग्रेसी बंधुओं के पास मोदी जी की विकास नीति का प्रतिकार करने के लिए  कुछ ठोस नीति नहीं है ,( जिसके दम  पर वो लोग अपनी आदत के अनुसार संसद में हंगामा कर सकें और संसद का काम ठप्प कर सकें) , अतःउन्होंने एक नया और भयंकर झूठ का सहारा लेने की नीति अपनाई है।

आप  सब ने भी  पढ़ा-सूना ही होगा कि फिल्म एक्टर आमिर खान ने एक समारोह में भारत में असहिश्णुता के बढ़ने की बात कही है और इस कारण इस देश में रहने में असमर्थता भी जाहिर की है ,क्योंकि यहां रहने में अब उनकी बीवी और बच्चों की सुरक्षा को ख़तरा है।

बड़ी हैरानी की बात है कि आमिर खान ने ऐसी मूर्खतापूर्ण (या जानबूझकर ,शरारतपूर्ण ) बात कही है  जब कि उसकी अपनी लेटेस्ट फिल्म में हिन्दुओं का भद्दा मज़ाक उड़ाया गया  था और उसकी ये फिल्म केवल गैर हिन्दुओं ने ही नहीं देखि थी बल्कि इस फिल्म ने उदार हिन्दू दर्शकों के दम  पर करोड़ों रुपयों का व्यवसाय किया था और इस आमिरखान को भी करोड़ों रूपये दिलवाए थे।  तब तो आमिर खान इस देश के लोगों को और यहां के फिल्म दर्शकों के उदारवादी नज़रिये की तारीफ़ करते नहीं थकते  थे।

मित्रों ,देश में भाईचारा बढे ताकि सम्पूर्ण समाज चहुंमुखी उन्नति कर सके ,ये बहुत अधिक आवश्यक है और देश  की इकलौती ज़रुरत भी है और यही प्रयत्न हर काल में और हर कदम पर इस देश के हितेषी करते रहे हैं।

इस देश में खुलेआम सिखभाईयों का लाखों की संख्या में  कत्लेआम किया गया ,कभी किसी मशहूर आदमी को इस देश में रहने में कोई ख़तरा नहीं महसूस हुआ ,उनके बच्चों को भी कोई खतरा नहीं हुआ।और मित्रों ,उस कत्लेआम को सही ठहराने के लिए और उस जघन्य अपराध की वकालत करने के लिए  उस समय तो उस समय के प्रधानमन्त्री तक ने खुलेआम एलानिया ये बात कही थी कि   "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती भी हिलती ही है। "

यही नहीं कश्मीर में हिन्दू पंडितों को उनकी पुरखों की ज़मीन से खदेड़ दिया गया ,उनकी बहन -बेटियों को बेआबरू किया गया ,तब ना तो कोई समझदार आगे आया और ना ही किसी ने इस गंदगी के खिलाफ आवाज़ उठाई।

इस देश का पिछले 68  साल का इतिहास दुर्भाग्यपूर्ण मजहबी दंगों में बहाये गए खून से से सना पड़ा है।

ना तो दंगे पहले कभी ठीक थे और ना आज ठीक कहे जा सकते हैं।

देश कोई भी हो समाज कोई भी हो इस प्रकार के दंगों से सभी को नुक्सान ही होता है ,इसलिए सब मिलकर ऐसी परिस्थिति को रोकने का प्रयत्न करते हैं ,लेकिन बड़े दुःख की बात है की आज जब एक नए विचार के साथ देश के प्रधानमन्त्री ने "  सब का साथ -सब का विकास  " का नारा दिया है और इस दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया है तब विरोधी लोग सहयोग करने के स्थान पर अपने चमचों की मदद से देश का माहौल बिगाड़ने में लगे हैं। उनके ये बयान इस  देश को और पूरे समाज को बदनाम करने वाले हैं , किसी एक आदमी को नहीं।

इसलिए इस झूठ की आंधी की चादर को उतार फेंकने की ज़रुरत है ,इस का डट कर सामना करने की ज़रुरत है ताकि राजनीति की बिसात पर देश के विकास की बलि ना चढ़ा दी जाए।



















































































































 

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

                                                                 एक नसीहत ,बड़े काम की 

कल मैं अपनी छोटी बहन से मिलने गया था। मैं और मेरी पत्नी बहन से मिल कर बहुत खुश-खुश घर वापिस लौट रहे थे।
लाजपत नगर से गुड़गाँव आने के लिए एक्सप्रेस वे से बड़े आराम से आया जा सकता है ,अतः हम भी इसी रास्ते से आ रहे थे।
दोपहर का समय था और गर्मी बहुत अधिक थी ,इस पर तुर्रा ये की मेरी गाडी का  ए  सी नहीं चल रहा था ,लेकिन मैं उस हाल में भी ईश्वर की दया से बड़े आराम से गाडी चलाता हुआ गाडी के शीशे नीचे करके आ रहा था।
चलते-चलते अचानक गाडी के इंजन से कड -कड  की आवाज़ आने लगी और इंजन खांसने लगा।
क्योंकि ट्रैफिक बहुत अधिक था और गाडी पुल की चढ़ाई चढ़ रही थी ,मैं गाडी वहाँ  नहीं रोक सकता था ,अतः दुसरे गियर में डाल  कर धीरे-धीरे मैं गाडी चलाता रहा।
जब पुल पार हो गया तो गाडी साइड में लेकर रोकी ,देखा इंजन बहुत गरम हो गया था।
अब मुझे याद आया कि बहुत दिनों से गाडी के इंजन के कूलिंग सिस्ट्म का पानी तो चेक किया ही नहीं था ,ज़रूर पानी ख़त्म हो गया होगा ,इसीलिए गाडी का इंजन गरम हो गया था।
खैर गाडी से उत्तर कर बोनट खोला ,रेडिएटर का ढक्कन बहुत अधिक गर्म था ,जैसे-तैसे एक थैले की मदद से ढक्कन खोला (मैं वक्त -बेवक्त ज़रुरत के लिए गाडी में थैला रखता हूँ )
अच्छी बात ये हुई की मेरी धर्मपत्नी घर से पीने के लिए पानी की एक बोतल ले कर चली थी और इस वक्त पानी की ही बहुत अधिक ज़रुरत थी। बेचारा इंजन भी तो प्यास के मारे निढाल था।
अब ज्यों ही गाडी में पानी डालना शुरू किया ,बहुत तेज़ी से गर्म पानी का फौव्वारा ऊपर तक फूट पड़ा (गरम गाडी में ये होना ही था )
अब साहब धीरे-धीरे मैं  गाडी में रुक-रुक कर पानी डालता रहा और गाडी में से वापिस गर्म पानी के फौव्वारे का नज़ारा करता रहा। मेरे पास सिर्फ एक लीटर पानी की  बोतल थी। मैं डर रहा था कि वो एक लीटर पानी कैसे
इंजन ठंडा करने का काम पूरा करेगा।
जो डर  था वही हुआ ,बोतल का पानी खत्म हो गया ,लेकिन इंजन से भाप निकलनी बंद नहीं हुई। हालात को देखते हुए इंजन को कम से कम दो लीटर पानी की और ज़रुरत थी।
हालत ये थी की हम लोग हाइ वे पर खड़े थे और ट्रेफिक बिना हमारी परवाह किये हमारे पास से धुंआधार भागता चला जा रहा था। आस-पास कहीं भी पानी के इंतज़ाम का कोई जुगाड़ नहीं नज़र आ रहा था।
अगर हम लोग वहीं खड़े-खड़े इंजन के ठंडा होने की इंतज़ार भी करते रहते तो भी बिना पानी डाले गाडी चला कर
आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था।
अभी मैं इस सारी  परिस्थिति से निकलने के रास्ते के बारे में सोच ही रहा था कि एक प्राइवेट टेक्सी हमारी गाडी के आगे आ कर रुकी।
टेक्सी का ड्राइवर  अपनी टेक्सी से उत्तर कर हमारे पास आया और हमारी परेशानी समझने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे बताया कि मेरे पास पानी खत्म हो गया है और इंजन में अभी काफी पानी की ज़रुरत है।
ड्राइवर महोदय बोले  , "घबराने की कोई ज़रुरत नहीं ,मेरे पास बहुत पानी है ,अभी सब ठीक हो जाएगा "
उस भले आदमी की मदद से हमें उस परेशानी से छुटकारा मिला।
मैंने उस नौजवान और शरीफ इंसान का धन्यवाद किया कि उसने उस भरी दोपहरी में हमारी परेशानी समझी और अपना समय नष्ट करते हुए हमारी निष्काम मदद की।
          
               अब मैं उस मुख्य बात पर आता हूँ जिसे बताने के लिए मैंने इतनी लम्बी-चौड़ी
                                                         भूमिका बाँधी है।

मेरे और मेरी पत्नी के धन्यवाद के जवाब में उस नौजवान ने जो  जवाब दिया उसे सुनकर हम लाजवाब हो गए।
उस नौजवान ने कहा ,"बुज़ुर्गों ,धन्यवाद मत करो ,इसके बजाये तीन ज़रूरतमंदों की मदद कर देना ,हिसाब बराबर हो जाएगा "
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही वो नौजवान अपनी टेक्सी में बैठकर वहाँ से चला गया।
कौन कहता है कि दुनिया मतलबी हो गयी है। दोस्तों ये दुनिया उस साधारण किस्म के  नौजवान जैसे लोगों के दम पर ही टिकी हुई है।
ईश्वर उसका सदा भला करेंगे ,ऐसा मुझे विश्वास है।