मंगलवार, 24 नवंबर 2015

                                                                              
                                                                                ॐ 

        

दोस्तों आजकल हमारे प्रिय देश में एक ख़ास तरह की हवा बहने लगी है और खतरनाक बात ये है कि ये हवा एक आंधी का रूप लेना शुरिु कर रही है। इससे पहले कि ये झूठ का अन्धड़ हमारे समाज को अपनी काली चादर में लपेट ले हमें सारी परिस्थिति को  अच्छी तरह से समझ लेना होगा ताकि समाज के दुश्मनों द्वारा  देश की विकास की नयी हवा की लहर को रोकने की साजिश सफल ना हो सकेऔर विकास की हवा की लहर के  झोंके  ठीक से देश के हर कोने को सुवासित कर सकें।
बिहार चुनाव के दिनों में देश में अवार्ड लौटाने का ड्रामा खूब सफलता से खेला गया था। अखबारों और टी वी पर भी इस ड्रामे ने खूब तहलका मचाया था। बिहार चुनाव ख़त्म होते ही अचानक ये ड्रामा भी ख़त्म हो गया था।

 लेकिन अब क्योंकि संसद का शीतकालीन अधिवेशन शुरू हो रहा है और दुर्भाग्यवश कांग्रेसी बंधुओं के पास मोदी जी की विकास नीति का प्रतिकार करने के लिए  कुछ ठोस नीति नहीं है ,( जिसके दम  पर वो लोग अपनी आदत के अनुसार संसद में हंगामा कर सकें और संसद का काम ठप्प कर सकें) , अतःउन्होंने एक नया और भयंकर झूठ का सहारा लेने की नीति अपनाई है।

आप  सब ने भी  पढ़ा-सूना ही होगा कि फिल्म एक्टर आमिर खान ने एक समारोह में भारत में असहिश्णुता के बढ़ने की बात कही है और इस कारण इस देश में रहने में असमर्थता भी जाहिर की है ,क्योंकि यहां रहने में अब उनकी बीवी और बच्चों की सुरक्षा को ख़तरा है।

बड़ी हैरानी की बात है कि आमिर खान ने ऐसी मूर्खतापूर्ण (या जानबूझकर ,शरारतपूर्ण ) बात कही है  जब कि उसकी अपनी लेटेस्ट फिल्म में हिन्दुओं का भद्दा मज़ाक उड़ाया गया  था और उसकी ये फिल्म केवल गैर हिन्दुओं ने ही नहीं देखि थी बल्कि इस फिल्म ने उदार हिन्दू दर्शकों के दम  पर करोड़ों रुपयों का व्यवसाय किया था और इस आमिरखान को भी करोड़ों रूपये दिलवाए थे।  तब तो आमिर खान इस देश के लोगों को और यहां के फिल्म दर्शकों के उदारवादी नज़रिये की तारीफ़ करते नहीं थकते  थे।

मित्रों ,देश में भाईचारा बढे ताकि सम्पूर्ण समाज चहुंमुखी उन्नति कर सके ,ये बहुत अधिक आवश्यक है और देश  की इकलौती ज़रुरत भी है और यही प्रयत्न हर काल में और हर कदम पर इस देश के हितेषी करते रहे हैं।

इस देश में खुलेआम सिखभाईयों का लाखों की संख्या में  कत्लेआम किया गया ,कभी किसी मशहूर आदमी को इस देश में रहने में कोई ख़तरा नहीं महसूस हुआ ,उनके बच्चों को भी कोई खतरा नहीं हुआ।और मित्रों ,उस कत्लेआम को सही ठहराने के लिए और उस जघन्य अपराध की वकालत करने के लिए  उस समय तो उस समय के प्रधानमन्त्री तक ने खुलेआम एलानिया ये बात कही थी कि   "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती भी हिलती ही है। "

यही नहीं कश्मीर में हिन्दू पंडितों को उनकी पुरखों की ज़मीन से खदेड़ दिया गया ,उनकी बहन -बेटियों को बेआबरू किया गया ,तब ना तो कोई समझदार आगे आया और ना ही किसी ने इस गंदगी के खिलाफ आवाज़ उठाई।

इस देश का पिछले 68  साल का इतिहास दुर्भाग्यपूर्ण मजहबी दंगों में बहाये गए खून से से सना पड़ा है।

ना तो दंगे पहले कभी ठीक थे और ना आज ठीक कहे जा सकते हैं।

देश कोई भी हो समाज कोई भी हो इस प्रकार के दंगों से सभी को नुक्सान ही होता है ,इसलिए सब मिलकर ऐसी परिस्थिति को रोकने का प्रयत्न करते हैं ,लेकिन बड़े दुःख की बात है की आज जब एक नए विचार के साथ देश के प्रधानमन्त्री ने "  सब का साथ -सब का विकास  " का नारा दिया है और इस दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया है तब विरोधी लोग सहयोग करने के स्थान पर अपने चमचों की मदद से देश का माहौल बिगाड़ने में लगे हैं। उनके ये बयान इस  देश को और पूरे समाज को बदनाम करने वाले हैं , किसी एक आदमी को नहीं।

इसलिए इस झूठ की आंधी की चादर को उतार फेंकने की ज़रुरत है ,इस का डट कर सामना करने की ज़रुरत है ताकि राजनीति की बिसात पर देश के विकास की बलि ना चढ़ा दी जाए।



















































































































 

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

                                                                 एक नसीहत ,बड़े काम की 

कल मैं अपनी छोटी बहन से मिलने गया था। मैं और मेरी पत्नी बहन से मिल कर बहुत खुश-खुश घर वापिस लौट रहे थे।
लाजपत नगर से गुड़गाँव आने के लिए एक्सप्रेस वे से बड़े आराम से आया जा सकता है ,अतः हम भी इसी रास्ते से आ रहे थे।
दोपहर का समय था और गर्मी बहुत अधिक थी ,इस पर तुर्रा ये की मेरी गाडी का  ए  सी नहीं चल रहा था ,लेकिन मैं उस हाल में भी ईश्वर की दया से बड़े आराम से गाडी चलाता हुआ गाडी के शीशे नीचे करके आ रहा था।
चलते-चलते अचानक गाडी के इंजन से कड -कड  की आवाज़ आने लगी और इंजन खांसने लगा।
क्योंकि ट्रैफिक बहुत अधिक था और गाडी पुल की चढ़ाई चढ़ रही थी ,मैं गाडी वहाँ  नहीं रोक सकता था ,अतः दुसरे गियर में डाल  कर धीरे-धीरे मैं गाडी चलाता रहा।
जब पुल पार हो गया तो गाडी साइड में लेकर रोकी ,देखा इंजन बहुत गरम हो गया था।
अब मुझे याद आया कि बहुत दिनों से गाडी के इंजन के कूलिंग सिस्ट्म का पानी तो चेक किया ही नहीं था ,ज़रूर पानी ख़त्म हो गया होगा ,इसीलिए गाडी का इंजन गरम हो गया था।
खैर गाडी से उत्तर कर बोनट खोला ,रेडिएटर का ढक्कन बहुत अधिक गर्म था ,जैसे-तैसे एक थैले की मदद से ढक्कन खोला (मैं वक्त -बेवक्त ज़रुरत के लिए गाडी में थैला रखता हूँ )
अच्छी बात ये हुई की मेरी धर्मपत्नी घर से पीने के लिए पानी की एक बोतल ले कर चली थी और इस वक्त पानी की ही बहुत अधिक ज़रुरत थी। बेचारा इंजन भी तो प्यास के मारे निढाल था।
अब ज्यों ही गाडी में पानी डालना शुरू किया ,बहुत तेज़ी से गर्म पानी का फौव्वारा ऊपर तक फूट पड़ा (गरम गाडी में ये होना ही था )
अब साहब धीरे-धीरे मैं  गाडी में रुक-रुक कर पानी डालता रहा और गाडी में से वापिस गर्म पानी के फौव्वारे का नज़ारा करता रहा। मेरे पास सिर्फ एक लीटर पानी की  बोतल थी। मैं डर रहा था कि वो एक लीटर पानी कैसे
इंजन ठंडा करने का काम पूरा करेगा।
जो डर  था वही हुआ ,बोतल का पानी खत्म हो गया ,लेकिन इंजन से भाप निकलनी बंद नहीं हुई। हालात को देखते हुए इंजन को कम से कम दो लीटर पानी की और ज़रुरत थी।
हालत ये थी की हम लोग हाइ वे पर खड़े थे और ट्रेफिक बिना हमारी परवाह किये हमारे पास से धुंआधार भागता चला जा रहा था। आस-पास कहीं भी पानी के इंतज़ाम का कोई जुगाड़ नहीं नज़र आ रहा था।
अगर हम लोग वहीं खड़े-खड़े इंजन के ठंडा होने की इंतज़ार भी करते रहते तो भी बिना पानी डाले गाडी चला कर
आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था।
अभी मैं इस सारी  परिस्थिति से निकलने के रास्ते के बारे में सोच ही रहा था कि एक प्राइवेट टेक्सी हमारी गाडी के आगे आ कर रुकी।
टेक्सी का ड्राइवर  अपनी टेक्सी से उत्तर कर हमारे पास आया और हमारी परेशानी समझने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे बताया कि मेरे पास पानी खत्म हो गया है और इंजन में अभी काफी पानी की ज़रुरत है।
ड्राइवर महोदय बोले  , "घबराने की कोई ज़रुरत नहीं ,मेरे पास बहुत पानी है ,अभी सब ठीक हो जाएगा "
उस भले आदमी की मदद से हमें उस परेशानी से छुटकारा मिला।
मैंने उस नौजवान और शरीफ इंसान का धन्यवाद किया कि उसने उस भरी दोपहरी में हमारी परेशानी समझी और अपना समय नष्ट करते हुए हमारी निष्काम मदद की।
          
               अब मैं उस मुख्य बात पर आता हूँ जिसे बताने के लिए मैंने इतनी लम्बी-चौड़ी
                                                         भूमिका बाँधी है।

मेरे और मेरी पत्नी के धन्यवाद के जवाब में उस नौजवान ने जो  जवाब दिया उसे सुनकर हम लाजवाब हो गए।
उस नौजवान ने कहा ,"बुज़ुर्गों ,धन्यवाद मत करो ,इसके बजाये तीन ज़रूरतमंदों की मदद कर देना ,हिसाब बराबर हो जाएगा "
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही वो नौजवान अपनी टेक्सी में बैठकर वहाँ से चला गया।
कौन कहता है कि दुनिया मतलबी हो गयी है। दोस्तों ये दुनिया उस साधारण किस्म के  नौजवान जैसे लोगों के दम पर ही टिकी हुई है।
ईश्वर उसका सदा भला करेंगे ,ऐसा मुझे विश्वास है।

 

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

चौंकिए नहीं , समझिये और फिर कुछ करिए.

 आज सुबह  , मेरी बेटी जैसी और बहुत विद्वान् , हमारे घर के पास में ही रहने वाली विदूषी , अपने पति के साथ मुझसे मिलने चली आई .
 अब विद्वान है तो विदुषी तो होगी ही ना , फिर विद्वान के साथ विदूषी " अलंकार " क्यों लगाया ?
 तो जवाब ये है जनाब कि अपने बच्चों की तारीफ करने से मन नहीं भरता , ख़ास करके तब जब कि  वो वास्तव में उसके हकदार हों .
 मैं इस बच्ची  का नाम नहीं लिखूंगा .   हाँ , इतना ज़रूर बताऊंगा की ये विद्वान लड़की दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है , अतः हम इसे प्रोफ़ेसर साहिबा के नाम से  ही जानेंगे .
 तो प्रोफ़ेसर साहिबा को अपने पति सहित  सुबह-सुबह घर आया देख मैं बहुत चौंका .
 इतनी विद्वान् महिला , जिसकी विद्वत्ता और गुणों के कारण , चारों ओर प्रशंसा ही प्रशंसा होती हो ,सुबह-सुबह आपके सामने स्वयं चल कर आपके घर आ जाए तो प्रसन्न होने के साथ-साथ आप चौंक तो जायेंगे ही ना .
 इन प्रोफ़ेसर साहिबा के परिचय के रूप में इतना और बताता चलूँ कि इन्होने खुद आगे बढ़कर लोगों से एक के बाद एक से मिलकर वो काम अकेली ने कर दिखाया जिसकी तारीफ़ जितनी अधिक की जाए , कम है .
 पिछले दिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी  ने अपने कोर्स में से स्वामी विवेकानंद जी के नाम का चैप्टर ही हटा दिया था इन प्रोफ़ेसर साहिबा ने खूब लम्बी लड़ाई बिना थके -बिना रुके ऐसी लड़ी कि कोर्स में केवल स्वामी विवेकानंद जी का ही चैप्टर नहीं , वेदोव्यास और सुश्रुत जैसे महान विभूतियों के चैप्टर भी कोर्स में शामिल करवा कर मानी .अब अगर मैं इनकी लड़ाई का पूरा विवरण देने बैठ गया तो मामला बहुत लंबा हो जाएगा , इसलिए जितना बताया है उसी से काम चला लीजिये . जो मैं बताना चाह रहा था , वो केवल ये है कि  जिन गरिमामयी  महिला का मैं ज़िक्र कर रहा हूँ वे विद्वान तो हैं ही साथ में संघर्ष शील भी हैं और फालतू की बातों में अपना समय नष्ट करना बिलकुल भी पसंद नहीं करती . तो है ना बड़े सम्मान की बात जब ऐसी हस्ती सुबह-सुबह आपके घर चल कर आ जाए .
खैर ये तो हुई परिचय आदि की बात , अब असल बात पर आता हूँ .
हाल-चाल और बाकी खैरियत जानने के बाद उन्होंने अपनी आमद की असल वजह जो बयान की उसे जान कर आप भी चौंक जायेंगे .
 प्रोफ़ेसर साहिबा ने कहा , " अंकल ,  ऐसा सुनने में आ रहा है कि आजकल चुनाव में  जो वोटिंग मशीने प्रयोग में आ रही  हैं , उनमें मन चाहे ढंग से हेरा-फेरी या गड़बड़ी जो भी आप करना  चाहें की जा सकती है ."
"हाँ , ये सही है और श्री सुब्रमण्यम स्वामी इस पॉइंट पर पहले से काम भी कर रहे हैं ." मैंने अपनी जानकारी जाहिर की .
 " ये तो बहुत खतरनाक बात है  . अगर कोई इन वोटिंग मशीनों के साथ छेड - छाड़  करता है तो वो तो मन चाहे ढंग से चुनावों का परिणाम प्राप्त कर सकता है ." प्रोफ़ेसर साहिबा ने अपनी चिंता व्यक्त की .
" इसीलिए डाक्टर स्वामी ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया है ." मैंने उन्हें बताया .
  "पर ये सब हो कैसे रहा है , ये तो हमारे लोकतंत्र पर ही  सीधा-सीधा हमला है . हम वोट किसी को देंगे और मशीन हमारा वोट किसी दुसरे के खाते में डाल  देगी . " प्रोफ़ेसर जी उत्तेजित हो कर बोलीं .
 " हाँ यही ख़तरा नज़र आ रहा है ,मैंने f b पर एक क्लिप  पढ़ा था , जिसमें बताया था कि  अभी पिछले दिनों , डाक्टर स्वामी के जोर देने पर चुनाव  आयोग को एक परीक्षण करवाना पडा , 10 ए वी एम मशीने अलग - अलग जगहों से उठाई गयीं , और उन पर परीक्षण किये गए .  हर मशीन पर अलग-अलग पार्टियों को वोट डालने की प्रक्रिया दोहराई  गई , 10 - 10 वोट हर पार्टी के पक्ष में हर मशीन पर  डाले गए , लेकिन ये देख कर सब दंग  रह गए कि डाले गए वोटों के 60 % वोट किसी एक ही पार्टी के खाते में डाले नज़र आ रहे थे ." मैंने बताया .
 " पूरी बात खुल कर बताइये " उन्होंने जोर दे कर कहा . " खुली और साफ़ बात ये है कि  परीक्षण में ये पाया गया की आप वोट किसी भी पार्टी  को डालें , डाले गए  वोटों का 60 % वोट कांग्रेस पार्टी के खाते में दिखाया जा रहा था, उस पार्टी के खाते में नहीं जिसके पक्ष में वोट डाले गए थे  . मैंने अपनी बात का खुलासा किया .
 " ये तो सरासर जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा है ,  लोकतंत्र की ह्त्या है . आज चारों ओर देश में  श्री नरेन्द्र मोदी के नाम की जो एक लहर दिखाई दे रही है , उसका क्या फायदा होगा , हम वोट श्री मोदी के उम्मीदवार के पक्ष में डालेंगे और वो पहुँच जाएगा कांग्रेसी उम्मीदवार के खाते में , इस खतरनाक धोखे से बचना बहुत ज़रूरी है , वरना सत्यानाश हो जाएगा ." उन्होंने अपनी बात कही .
 " अच्छा हुआ तुम आ गयीं और यह मामला उठा दिया , क्योंकि मैं भी सोच ही रहा था की इस सारी बात की पूरी सच्चाई जाननी चाहिए और फिर इस बात का व्यापक प्रचार जन-जन तक अवश्य करना चाहिए  .
" तो आपने इस बारे में क्या सोचा है , हमें इस बारे में बड़ी गंभीरता से कार्यवाही करनी चाहिए और जल्दी करनी चाहिए ." उनका कहना था .
 " मैं सोचता हूँ कि सबसे पहले हम लोगों को डाक्टर सुब्रमण्यम स्वामी से मिलना चाहिए , उनसे इस बारे में सारी  सच्चाई जाननी चाहिए और फिर उनके द्वारा बताये रास्ते पर चल कर इस समस्या के खिलाफ  लड़ना  चाहिए ." मैंने अपनी राय बताई .
 ये बात सब को पसंद आई  और तय ये हुआ कि प्रोफ़ेसर साहिबा  डाक्टर स्वामी से मिलने  का समय लेने का प्रयत्न करेंगी और फिर हम लोग उनसे मिलकर इस बारे में सारी असलियत जानने के बाद उनके निर्देश के अनुसार अगली कार्यवाही करेंगे . और फिर आज की सभा विसर्जित हो गई .
ये सारी  बात आप तक पहुंचाने का मकसद केवल कोई अफ्फाह फैलाना नहीं है बल्कि  आप सब से प्रार्थना करना है कि आप सब इस लिंक को पढने के बाद इस बारे में जो भी जानकारी रखते हों , मेहरबानी करके उस जानकारी को हम तक f b के ज़रिये अवश्य पहुंचायेन  . बड़ी मेहरबानी होगी . ये राष्ट्र हित का मामला है जिसे बहुत  गंभीरता से  लेना बहुत आवश्यक है . आशा करता हूँ की सभी पाठक इसे बहुत गंभीरता से लेंगे एवं अपना विचार भी अवश्य लिखेंगे . धन्यवाद 




   


शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

भगत जी - 4

भगत जी के पिता ,जिन्हें वो बचपन  से बाबा कह कर बुलाती थी , पेशे से जौहरी थे .

  बड़े-बाज़ार में उनकी सोने-चांदी के गहनों की दूकान थी , जहां सारा दिन ग्राहकों की आवा-जाहि लगी ही रहती थी . 

नीचे दूकान और ऊपर पहली मंजिल पर उनका घर था , दुकान की बगल से ही ऊपर घर के लिए जीना चढ़ता था .बाबा सुबह दस बजे दुकान खोलते तो दोपहर को खाना खाने के लिए ही जीना चढ़कर ऊपर घर  आते .  खाना खा कर थोड़ी देर आराम करते और फिर नीचे दुकान में पहुँच जाते .शाम को दुकान हमेशा दिन रहते ही बढ़ा दी जाती . 

घर का सारा काम-काज  अम्माँ  खुद अपने हाथों से ही करती थी . नौकर - नौकरानी रखना अम्मा खतरनाक समझती थीं . दुकान से ज्यादा सोना-चांदी  घर के स्टोर में जो भरा रहता था .  '' नौकरों का क्या भरोसा ,'' अम्मा कहा करती .

बचपन से लेकर जवान होने तक भगत जी का  वही , रोज़ का लगा-बंधा एक ही रूटीन था .

सुबह-शाम बाबा के साथ नहर की तरफ सैर करने जाना , कालेज से आकर नाश्ता करके सो जाना , शाम से रात तक रेडिओ पर गाने सुनते-सुनते पढ़ना और खूब पढ़ना .

घर से ऊपर दूसरी मंजिल पर एक बहुत बड़ा कमरा था ,जिसके आधे भाग में पीछे की तरफ ना जाने अम्माँ ने क्या-क्या काठ-कबाड़ भर रखा था , पर आगे का बाकी का कमरा भगत जी की अपनी सल्तनत था , जिसे उसने बड़े अच्छे तरीके से अपने आराम और कभी-कभी पढने के लिए सजा के रखा हुआ था .कमरे के बीच में अम्मा ने अपनी पुरानी धोतिओं को सी कर पर्दा बना कर टांग दिया था जिसके पीछे सारा काठ-कबाड़ और उसमें उधम मचाते चूहे छुप गए थे .

दसवीं की परीक्षा भगत जी ने फर्स्ट डिविज़न से पास की .

अम्मा ने दिल खोल के  लड्डू बांटे .

भगत जी की इच्छा आगे चल कर डाक्टर बनने की थी . इसलिए उसने ग्यारहवीं में विज्ञान के विषयों में बायोलोजी पढनी चाही .


  लेकिन शुरू के महीने में ही जब मेंडक काटने की नौबत आन पड़ी तो वो घबरा कर बायलोजी की क्लास छोड़, मेथेमेटिक्स  की  क्लास में आ बैठी .


    बाहरवीं  की  परीक्षा भी उसने 82% अंक प्राप्त करके पास की .चारों ओर से बधाई की बौछार होने लगी . उस की अम्माँ ख़ुशी में मिठाइयां बाँट रही थी पर भगत जी ऊपर से दिखावे की हंसी हँसते हुए अन्दर ही अन्दर रो रही थी .  

    और फिर रिज़ल्ट आने के दो दिन बाद ही सुबह सवेरे बाबा के साथ नहर की तरफ सैर के लिए जाने से भी पहले  उसने रुलाई को गले में घोंटते हुए अपने घर से पालायन कर दिया . 


     पीछे अम्माँ - बाबा पर क्या बीतेगी , जब भी कभी  सारी बात खुलेगी , क्या कोई उसकी मजबूरी समझ पायेगा  ,  क्या सारा दोष उसी का माना जाएगा , इन्हीं चिंताओं के बवंडर में फंसी वो हर पल  घर से दूर और अपने अम्माँ-बाबा की सुरक्षा भरी छाया से बहुत दूर होती चली गयी .


        घर से पालायन करती भगत जी सवालों के  बवन्डर में घिरी किसी भी सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पा रही थी .
     ट्रेन दौडती जा रही थी और  ट्रेन के साथ ही दौड़ रहे थे भगत जी के दिमाग में बीते पलों के  दृश्य .


   बाहरवीं कक्षा की परीक्षाएं समाप्त होने के बाद उसका अपने ऊपर वाले कमरे में आना-जाना  बढ़ गया था . उसके दिन का  ज्यादा समय ऊपर वाले कमरे में रेडियो  सुनने , किताबें पढने और सोने में निकल जाता था . नीचे तो अम्मा के बार-बार चिल्लाने पर ही नाश्ता और खाना खाने भर के लिए उतरती थी .


          उसका यूं ऊपर के कमरे में सारा-सारा दिन रेडियो सुनना और किताबें  पढने में समय गुजारना  उसकी कम्मो बुआ को एक आँख ना भाता था .वो तो वैसे भी शुरू से ही उसके लड़कों वाले रख-रखाव से बहुत चिढती थीं  ,  उन्हें पसंद जो नहीं था उसका यूं लड़कों कि तरह कपडे पहनना , लड़कों कि तरह बात-चीत करना ,  लड़कों की तरह बेबाक व्यवहार करना .               


  '' लड़की है तो लड़कियों की तरह सलीके से रखो , उसे खाना बनाना सिखाओ , सीना-परोना सिखाओ और घर के दुसरे काम-काज सिखाओ , ताकि आगे चलकर अपना घर-बार संभल सके , ये क्या कि लड़कों कि तरह कपडे पहना दिए , लड़कों कि तरह बोल-चाल सिखा दी ,  अरे यह  सब करने से क्या लड़की लड़का बन जायेगी ,  आखिर को तो बड़ी होकर बच्चे ही जानेगी ''.  बुआ उसकी अम्मा को समझाने की कोशिश में उपदेश देती  .


अम्मा हर बार एक ही बात कह कर टालने की कोशिश करती , '' जीजी , भगत जी की अभी तो पढने - खेलने की उम्र है , चिंता क्यों करती हो बखत आने पर सब ठीक हो जावेगा ''.


         जितने दिन कम्मो बुआ दिल्ली से आकरअपने मायके में  रहतीं उनकी ये चकल्लस जारी रहती .  बड़ी ननद की  बातों का खुलकर विरोध करने की तो अम्मा में हिम्मत थी नहीं , तो  कम्मो बुआ जब अपना ये रोज़ का राग अलापतीं तो अम्मा उनकी बात को   नज़रन्दाज़ करने की कोशिश में इधर -उधर होने की कोशिश करतीं ताकि बुआ बक-झक कर अपने आप थक कर चुप हो जाए . पर बुआ कहाँ थकने  वाली थी .

  इस बार तो कम्मो बुआ के साथ दिल्ली से उनके पति  , यानी गोवर्धन फूफा भी आये थे . 

     पैंसठ साल पार कर चुके गोवर्धन फूफा से बुढापा अभी कोसों दूर था . बलिष्ठ शरीर के सुन्दर व्यक्तित्व वाले गोवर्धन फूफा , बस एक तंदरुस्त प्रौढ़  ही नज़र आते थे  जो रोज़ सुबह सवेरे उठ कर दण्ड-बैठक पेलने के रियाज़ी थे . कसरत के बाद गाय का ताज़ा दुहा दो किलो दूध आराम से डकार जाते थे . घण्टा भर आराम करने के बाद नहा धो कर बेनागा मंदिर जाते और घण्टा-घण्टा शिवजी की हाजरी भरते . मंदिर से घर आते तक एक किलो खोये की बर्फी  का प्रसाद रास्ते में मिलने वाले भक्तों में बांटते हुए आते . जब कभी फूफा उनके घर आये हुए होते सारे घर के साथ उसे भी बर्फी का प्रसाद रोज़ खाने को मिलता .औरों को एक-आध टुकडा बर्फी मिलती पर भगत जी को हमेशा कम से कम चार-पांच टुकड़े बर्फी मिला करती थी . उसके लिए वो मिठाई ज़्यादा और प्रसाद कम थी .

 '' सर्दी हो या गर्मी , आंधी हो चाहे बरसात , हमारे लाला जी का रोज़ का ये नियम कभी नहीं टूटता ''. कम्मो बुआ बड़े गर्व से बताया करती थी .

उसके बाबा अपनी बड़ी बहन का बहुत सम्मान करते थे . बाबा बताया करते थे कि कम्मो जीजी के बाद उनकी माँ की  कई औलाद हुई  लेकिन बची कोई भी नहीं . फिर जब कम्मो बुआ अभी दस बरस की बच्ची ही थी , उनकी माँ उनको जन्म देकर चल बसी . तब दस बरस की बच्ची ने अपने नव जात भाई को माँ बन कर पाला . बाबा की माँ के मरने के बाद कहने को घर में baba ki vidhva 








  धूप में अभी तेज़ी नहीं आयी थी परन्तु  धूप अब  सुहानी भी नहीं रह गयी थी , इसीलिए वो 


   

रविवार, 21 अगस्त 2011

भगत जी---3

    भगत जी कि बात से चौंकी  हुई श्रीमति जी की तरफ़् देखते हुए अपनी अनभिज्ञता जताते हुए मैने अपने दोनों  कन्धे उचका दिये .    

'' चौंकिए मत और ना ही परेशान होइए , जो बात मुन्ना ने आपको नहीं बताई ,वो मैं आपको बताती हूँ ,  जैसा कि आपको मुन्ना ने भी बताया होगा , मैं लड़का नहीं ,लड़के के रूप में एक लड़की हूँ , ये बात मुन्ना को कालेज में तीसरे  दिन पता चली  थी ---- '', भगत जी ने अपनी बात आगे बढाते हुए कहना शुरू किया .


'' हाँ , ये तो मुझे मालूम है , इसमें ख़ास बात क्या है ? '' श्रीमती जी ने भगत जी को बीच में ही टोकते हुए कहा .


  '' अरे बाबा , आप ख़ास या आम का चक्कर छोडिये और आराम से पूरी बात सुनिए '', भगत जी ने हँसते  हुए कहा ,और अपनी बात आगे बढाते हुए बोली ,  '' मेरी असलियत मालूम होने के बाद उस दिन मुन्ना बाकी का सारा दिन गम-सुम सा ही रहा .मैं देख रही थी कि वो अपने-आप में ही कहीं खोया हुआ था ,उसका मन आधी-छुट्टी के बाद की किसी भी क्लास में नहीं लगा.मुझे उस पर बहुत तरस सा आया.मैं भी बार-बार , सदा मुस्कराते रहने वाले, उसके उस दिन बुझे हुए चेहरे को ,देख-देख कर परेशान होती रही .


   छुट्टी के बाद जब मैं खुद उसके पास गई और उसे लड्डू वाली  बात कही तो वो छोटे बच्चों की तरह तुरंत खुश हो गया , कालेज से लौटते समय सारे रास्ते वो रोज़ की तरह हंसता-खेलता ख़ुशी-ख़ुशी आया .
   क्लास में वो उदास था , क्योंकि वो डर गया था की कहीं वो मुझे और मेरी दोस्ती को खो ना दे ,पर अब जब वो जान गया कि मैं अभी भी उसके साथ बिना किसी नाराजगी के वही पहले जैसा सहज व्यवहार कर रही हूँ तो वो तुरन्त खुश  हो गया . जैसे रोता हुआ बच्चा अपनी मन चाही चीज़ मिल जाने पर  रोते-रोते अचानक हंसने लगता है . मैंने महसूस किया  कि मुन्ना एकदम एक निश्छल बच्चे की तरह ही था .
     उस रात बहुत देर तक मैं  कालेज में हुई सारी घटना और उसकी वज़ह से परेशान हाल मुन्ना के बारे में ही सोचती रही ,ना जाने कितनी देर इन्हीं ख्यालों में खोया मेरा बालक मन अचानक बाल-पन को पीछे छोड़ समझदारी की बातें सोचने लगा  और उस रात पहली बार मेरे अन्दर की लड़की जाग उठी  .
अगले दिन आधी छुट्टी में खाना खाने के बाद जब हमारी क्लास के बाकी के सारे लड़के-लडकियां क्लास रूम से बाहर चले गए तब मुन्ना  को मैंने क्लास में ही रोक लिया और इससे पहले की यह कुछ समझ पाता मैंने अपने बस्ते में से मौली का  एक टुकडा निकाला और इसकी दायीं कलाई पर 
बाँध दिया .
ये बुद्धू कभी अपनी कलाई पर बंधी मौली को देखे कभी मुझे .
देखता क्या है ? , ये राखी है , तू जानता है ना की मैं तेरे से डेढ़ साल बड़ी हूँ  , तो अच्छी तरह से समझ ले, कि आज से मैं तेरी बड़ी बहन हूँ और तू मेरा छोटा भाई, मैंने इसकी नाक पकड़ कर हिलाते हुए कहा .
और भाभी मेरे छोटे भैया ने  अपनी जेब से निकाल कर अपनी जेब-खर्ची का   दस पैसे का सिक्का खट्ट से मेरे हाथ पर रख दिया  .
मैंने इसे समझाया कि इस बारे में कभी किसी को मत बताना और हमेशा मुझे भगत जी ही कह कर बुलाना , और हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी बेसन के लड्डू खाने चले गए .उस दिन लड्डू , इसे मैंने खिलाये .
पूरे चार साल अपने घर में राखी बन्धवाने के बाद ये चुपचाप हमारी गली में आ जाता और चुपके से मेरे से राखी बन्धवाता और भाग जाता .
लड़के-लडकियां छुप-छुप कर प्यार तो करते हैं  पर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को यूं छुप-छुप कर हम दोनों ही निभाते रहे .
एक मिनट रुको '',कहती हुई भगत जी  उठ कर अन्दर कमरे में चली गयी .
जब वो लौटी तो उसके हाथ में एक बहुत खूबसूरत लाल रंग की थैली थी .


भगत जी ने वो थैली मेरे हाथ में पकड़ा दी और  मुझे बोली , '' इस थैली में पिछले इक्कीस सालों की इक्कीस राखियाँ हैं , हर साल तेरी लम्बी उम्र की दुआ मांगती मैं तेरे लिए सुन्दर से सुन्दर राखी बाज़ार से लाती और सारा दिन उसे मंदिर में रख कर उसे इस थैली में संभाल कर रख देती ,इस विश्वास के साथ कि एक ना एक दिन तू मुझे ज़रूर मिलेगा और जिस दिन  तू मुझे मिलेगा मैं ये सारी राखियाँ तुझे सौंप दूँगी , ले संभाल अपनी राखियाँ और मुझे मेरे  इक्कीस दस पैसे के सिक्के दे '' .


मैंने हौले से थैली खोली . 


थैली में ज़री और सिल्मे - सितारों वाली राखियाँ भरी थीं . मैंने थैली में हाथ डालकर राखियाँ बाहर निकाल लीं .कुछ राखियों को छोड़ बाकी अभी भी झिलमिला रही थीं .


मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था , क्या कहूं ? क्या ना कहूं   ? 


बस चुपचाप बैठा राखियों को ही उलट-पुलट रहा था और मेरी आँखें भर-भर आ रही थीं.


भगत जी ने अपना हाथ मेरे सर पर प्यार से फेरा और मेरे  सर पर आशीर्वाद भरा चुम्बन अंकित कर दिया .


मेरी धर्मपत्नी ने फुर्ती दिखाते हुए सौ-सौ के इक्कीस नोट भगत जी को देने के लिए मेरे हाथ में रख दिए .


मैंने जब वो नोट भगत जी को देने चाहे तो वो बोली,'' मैं ये रूपये नहीं लूंगी, देना है तो वही दस पैसे वाले इक्कीस सिक्के दे दे , जो हमेशा दिया करता था , मैं ख़ुशी-ख़ुशी ले लूंगी .''


 '' पर जीजी , तब आपका भाई आज की तरह कमाता कहाँ था , अब तो ईश्वर की कृपा से और आपके आशीर्वाद से ये फर्स्ट-क्लास गजेटेड आफिसर हैं और खूब अच्छा-खासा कमा भी रहे हैं , भाई से लेना तो आपका हक है , इसलिए इसे लीजिये और आशीर्वाद दीजिये कि आपके भाई की और तरक्की हो और वो आपको और अधिक देने के लायक बने .''  धर्मपत्नी ने भगत जी के पाँव छू कर  नोट उन्हें पकड़ाते हुए कहा .  


 '' मेरा तो रोम-रोम सदा इसे आशीर्वाद् देता है ,  मेरा भाई और उसका पूरा परिवार  सदा स्वस्थ रहे  , खुश रहे  , दिन दूनी और रात चौगनी तरक्की करे '' हम दोनो को अपने आलिङ्गन में भर कर चूमते  हुए भगत जी ने कहा .


हम दोनों ने भगत जी के एक बार फिर पाँव छुए और अपने अपने स्थान पर बैठ गए .


  '' भाभी , आप कहो तो पहले खाना खा लें , फिर आराम से बैठकर बातें करेंगे . '' भगत जी ने हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा .


 '' एक मिनट जीजी , ये क्या तरीका हुआ भला , आप बड़ी ननद होते हुए भी मुझे आप-आप कह के बुला रही हो , सीधे-सीधे बड़ी ननद के अधिकार से मुझे  मेरे नाम से यानि ज्योति कहकर बुलाइए न .'' मेरी धरमपत्नी अब भगत जी से पूरी तरह घुल-मिल गई थी और बहुत खुश नज़र आ रही थी . 


  '' ठीक है बाबा , अब से मैं तुझे ज्योति ही कह कर बुलाऊंगी , चल अब पहले चल कर खाना खाते हैं , वरना मैगी नाराज़ हो जायेगी , कहेगी बातों से ही पेट भरना था तो खाना क्यों बनवाया था ,वगैरह वगैरह --''


    '' ठीक है जीजी , चलिए पहले पेट पूजा-पीछे काम दूजा , '' कहते हुए श्रीमती जी भगत जी के साथ हो लीं और मैं उन दोनों के पीछे-पीछे डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा . 


'' अच्छा भगत जी ,ये तो बताओ कि घर के बाक़ी लोग कहाँ हैं , कोई नज़र नहीं आ रहा  ? '' , मैंने एक कुर्सी अपनी तरफ खिसकाते हुए कहा .


       '' राज किशोर कल शाम को अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल गया है , फेरा डलवाने की रस्म के लिए और चन्द्र शेखर अपनी गाडी लेकर सुबह से निकला है , कह रहा था उसने किसी से बहुत ज़रूरी काम के सिलसिले में मिलना है , अपनी मीटिंग के बाद  चन्द्र अपने भाई-भाभी को लेने के लिए जाएगा और फिर वोलोग राज की ससुराल से ही सीधे नईदिल्ली स्टेशन चले जायेंगे , जहां से शाम को राज और कमला  ट्रेन से  जम्मू के लिए रवाना होंगे , आगे काश्मीर जाने के लिए . तुम लोगों से चन्द्र स्टेशन से लौट कर ही मिलेगा . '' भगत जी ने सारा विवरण सविस्तार बताते हुए कहा .


मैगी बच्चों को लेकर आ गयी . सबने मिलकर मैगी के हाथ का बना स्वादिष्ट खाना खाया और आराम से वापिस आकर ड्राइंग रूम में बैठ गए .


दोनों बच्चे मैगी के साथ खुश थे .


   भगत जी ने खुद ही कहना शुरू किया  , '' मैं जानती हूँ तुम दोनों मेरी पिछले बाईस साल की पूरी कहानी जानने को बहुत उत्सुक हो , मैं भी पिछले बाईस साल से अपने अन्दर ही अन्दर घुट रही हूँ , पूरी बात कभी किसी से नहीं कह सकी. ना बाबा से ना अम्मा से , एक ये मैगी है जिसके आगे रह-रह के दुखड़े रोती रही हूँ , पर ये भी बेचारी किस्मत की मारी ही है , सो जितना होता दोनों एक-दुसरे के आगे रो लिया करते और एक दुसरे को संभालने की कोशिश भी करते रहते . ''


बोलते-बोलते भगत जी अपने अतीत में खो गयी और फिर संभल कर सारी कहानी दोहराने लगी .


भगत जी ने जो कुछ भी बताया उसे मैं अपने तरीके से बताने की कोशिश करूंगा .