शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

                                                                 एक नसीहत ,बड़े काम की 

कल मैं अपनी छोटी बहन से मिलने गया था। मैं और मेरी पत्नी बहन से मिल कर बहुत खुश-खुश घर वापिस लौट रहे थे।
लाजपत नगर से गुड़गाँव आने के लिए एक्सप्रेस वे से बड़े आराम से आया जा सकता है ,अतः हम भी इसी रास्ते से आ रहे थे।
दोपहर का समय था और गर्मी बहुत अधिक थी ,इस पर तुर्रा ये की मेरी गाडी का  ए  सी नहीं चल रहा था ,लेकिन मैं उस हाल में भी ईश्वर की दया से बड़े आराम से गाडी चलाता हुआ गाडी के शीशे नीचे करके आ रहा था।
चलते-चलते अचानक गाडी के इंजन से कड -कड  की आवाज़ आने लगी और इंजन खांसने लगा।
क्योंकि ट्रैफिक बहुत अधिक था और गाडी पुल की चढ़ाई चढ़ रही थी ,मैं गाडी वहाँ  नहीं रोक सकता था ,अतः दुसरे गियर में डाल  कर धीरे-धीरे मैं गाडी चलाता रहा।
जब पुल पार हो गया तो गाडी साइड में लेकर रोकी ,देखा इंजन बहुत गरम हो गया था।
अब मुझे याद आया कि बहुत दिनों से गाडी के इंजन के कूलिंग सिस्ट्म का पानी तो चेक किया ही नहीं था ,ज़रूर पानी ख़त्म हो गया होगा ,इसीलिए गाडी का इंजन गरम हो गया था।
खैर गाडी से उत्तर कर बोनट खोला ,रेडिएटर का ढक्कन बहुत अधिक गर्म था ,जैसे-तैसे एक थैले की मदद से ढक्कन खोला (मैं वक्त -बेवक्त ज़रुरत के लिए गाडी में थैला रखता हूँ )
अच्छी बात ये हुई की मेरी धर्मपत्नी घर से पीने के लिए पानी की एक बोतल ले कर चली थी और इस वक्त पानी की ही बहुत अधिक ज़रुरत थी। बेचारा इंजन भी तो प्यास के मारे निढाल था।
अब ज्यों ही गाडी में पानी डालना शुरू किया ,बहुत तेज़ी से गर्म पानी का फौव्वारा ऊपर तक फूट पड़ा (गरम गाडी में ये होना ही था )
अब साहब धीरे-धीरे मैं  गाडी में रुक-रुक कर पानी डालता रहा और गाडी में से वापिस गर्म पानी के फौव्वारे का नज़ारा करता रहा। मेरे पास सिर्फ एक लीटर पानी की  बोतल थी। मैं डर रहा था कि वो एक लीटर पानी कैसे
इंजन ठंडा करने का काम पूरा करेगा।
जो डर  था वही हुआ ,बोतल का पानी खत्म हो गया ,लेकिन इंजन से भाप निकलनी बंद नहीं हुई। हालात को देखते हुए इंजन को कम से कम दो लीटर पानी की और ज़रुरत थी।
हालत ये थी की हम लोग हाइ वे पर खड़े थे और ट्रेफिक बिना हमारी परवाह किये हमारे पास से धुंआधार भागता चला जा रहा था। आस-पास कहीं भी पानी के इंतज़ाम का कोई जुगाड़ नहीं नज़र आ रहा था।
अगर हम लोग वहीं खड़े-खड़े इंजन के ठंडा होने की इंतज़ार भी करते रहते तो भी बिना पानी डाले गाडी चला कर
आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था।
अभी मैं इस सारी  परिस्थिति से निकलने के रास्ते के बारे में सोच ही रहा था कि एक प्राइवेट टेक्सी हमारी गाडी के आगे आ कर रुकी।
टेक्सी का ड्राइवर  अपनी टेक्सी से उत्तर कर हमारे पास आया और हमारी परेशानी समझने की कोशिश करने लगा। मैंने उसे बताया कि मेरे पास पानी खत्म हो गया है और इंजन में अभी काफी पानी की ज़रुरत है।
ड्राइवर महोदय बोले  , "घबराने की कोई ज़रुरत नहीं ,मेरे पास बहुत पानी है ,अभी सब ठीक हो जाएगा "
उस भले आदमी की मदद से हमें उस परेशानी से छुटकारा मिला।
मैंने उस नौजवान और शरीफ इंसान का धन्यवाद किया कि उसने उस भरी दोपहरी में हमारी परेशानी समझी और अपना समय नष्ट करते हुए हमारी निष्काम मदद की।
          
               अब मैं उस मुख्य बात पर आता हूँ जिसे बताने के लिए मैंने इतनी लम्बी-चौड़ी
                                                         भूमिका बाँधी है।

मेरे और मेरी पत्नी के धन्यवाद के जवाब में उस नौजवान ने जो  जवाब दिया उसे सुनकर हम लाजवाब हो गए।
उस नौजवान ने कहा ,"बुज़ुर्गों ,धन्यवाद मत करो ,इसके बजाये तीन ज़रूरतमंदों की मदद कर देना ,हिसाब बराबर हो जाएगा "
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही वो नौजवान अपनी टेक्सी में बैठकर वहाँ से चला गया।
कौन कहता है कि दुनिया मतलबी हो गयी है। दोस्तों ये दुनिया उस साधारण किस्म के  नौजवान जैसे लोगों के दम पर ही टिकी हुई है।
ईश्वर उसका सदा भला करेंगे ,ऐसा मुझे विश्वास है।

 

1 टिप्पणी:

  1. ज़रुरत के वक़्त कोई इस तरह काम आता है तो वाकई अच्छा लगता है। ऐसे कई किस्से हमारे साथ भी हुए। उनसे हमने भी यही बात सीखी।

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