मंगलवार, 8 मार्च 2011

महिला दिवस


तो आज महिला दिवस है.
कुछ  वर्ष पहले की बात है, मेरे एक मित्र महोदय अपनी पोती को, उसकी जिद पर, दशहरे के अवसर पर, रावण-दहन का मेला दिखाने  ले जाने को मजबूर हुए.
मजबूर? हाँ मजबूर, असल में भीड़-भाड़ में आना- जाना उन्हें कतई पसंद नहीं.बहुत  परेशानी होती है उन्हें भीड़ और उसके हल्ले-गुल्ले से.

पर मजबूर थे,एक तरफ छः बरस की बच्ची की जिद और दूसरी तरफ बच्ची की दादी यानी उनकी श्रीमती जी की पुरजोर, धमकाने के अंदाज़ में, की जाने वाली मनुहार , ना चाहते हुए भी उन्हें मानना पडा.

अब जाना पड़ा तो उन्होंने जबरदस्ती मुझे भी अपने साथ टांग लिया. 

आग्रह टालना कठिन था अतः पडोसी-धर्म निभाते हुए मुझे भी, मजबूरी में, उनके साथ गाड़ी में बैठना पड़ा. 

बच्ची को मेला घुमाया,उसके साथ जायंट-व्हील के झूले पर भी बैठे पर फिर एक समस्या सामने आन खड़ी हुई.

एक कुल्फी बच्ची को लेकर दी और एक-एक कुल्फी हम दोनों ने थामी और गंभीर समस्या का शायद कोई निदान सूझ जाए ये विचारते हुए कुल्फी की चुस्कियां लेने लगे.


बच्ची की फरमाइश पर कुल्फी का दूसरा राउंड चालू था कि अचानक अपने एक प्रेमी श्री रमेश जी सपरिवार कुल्फी वाले की तरफ बढ़ते नज़र आये.
 उन्हें जब मालूम हुआ कि हम लोग इस गंभीर समस्या में उलझे हुए थे कि
बच्ची को इस भीड़ में दूर खड़े होकर भीड़ के पीछे से रावण-दहन का नज़ारा  कैसे दिखाया जाए तो जैसे उन्होंने गंभीर समस्याओं  का निदान ढूँढने में कुल्फी के महत्व की रख्या करते हुए हम लोगों को अपने साथ आने का निमंत्रण दिया. 

उनके पास वी.वी.आई.पी.बाड़े में बैठने के, पूरे परिवार के लिए,पास थे.

कुल्फी ने बड़ी जल्दी और बड़े आराम से इतनी विकट समस्या का हल यों चुटकी बजाते कर दिया था कि मैं तो कुल्फी का कायल हुए बिना नहीं रह सका और मैंने रमेश जी व  उनके परिवार का साथ देने के लिए एक कुल्फी और खाई.

रमेश जी व उनके परिवार के साथ हम लोग भी वी.वी.आई.पी.बाड़े में पहुंचे.

यहाँ से हर दृश्य साफ़ नज़र आ रहा था.

रमेश जी ने बड़े प्रेम से अपने परिवार के अन्य बच्चों के साथ मित्र महोदय की पोती को भी सबसे आगे वाली पंक्ती में बैठाया.

रावण-दहन से पहले की रामलीला दिखाई जा रही थी, कुछ बच्चे जो हनुमान जी की सेना के बन्दर बने हुए थे,हाथ में गदा लिए उछल-कूद कर रहे थे . सब लोग चारों ओर व्याप्त  हर्ष और उल्लास के वातावरण का आनंद अपने-अपने बच्चों को खुश देखकर और भी अधिक उठा रहे थे.

इतने में हमारे बाड़े के पास ही बने स्टेज के पीछे हलचल हुई.

रामलीला कमेटी के सेक्रेटरी महोदय व कमेटी के अन्य सदस्य एक अच्छे-खासे मोटे-ताज़े सज्जन को साथ लिए स्टेज पर आये और फिर उन सज्जन के स्वागत का सिलसिला प्रारम्भ हो गया.

 रामलीला कमेटी के सदस्यों के अतिरिक्त, राम,लख्यमन,सीता व रावण की भूमिका करने वाले अभिनेताओं ने भी उनका फूल-मालाओं द्वारा स्वागत  किया.
मैंने यह बात विशेष रूप से भाँपी कि रमेश जी की विदूषी पुत्रवधू ,जो एक महिला कोलेज में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफ़ेसर थी, इन सज्जन के स्टेज पर आने के बाद से इतनी  ज्यादा बैचैन नज़र आ रही थी कि अपनी कुर्सी पर आराम से बैठ नहीं पा रही थी. 

मुझ से रहा नहीं गया तो मैंने अपने मन की बात रमेश जी को कही. रमेश जी बड़े शुष्क स्वर में बस इतना ही बोले,'' बाद में बात करते हैं.'' 

उनकी कुछ अतिरिक्त गंभीर मुख-मुद्रा देख कर  मुझे चुप रह जाना पड़ा. 

कार्यक्रम का मुख्य दृश्य उपस्थित हुआ. श्री राम का अभिनय कर रहे पात्र ने रावण के पुतले पर जलता तीर चला कर रस्म पूरी की और उसके बाद फूल-मालाओं से सजा एक विशेष धनुष लाया गया जिस पर तीर चढ़ा कर उन सज्जन से  रावण के पुतले पर चलवाया गया और रावण मार दिया गया,हर साल की तरह फिर-फिर ज़िंदा होने के लिए.

आतिशबाजियों के शोर से आसमान गूँज उठा.

बच्चे बहुत खुश थे और हम उनको खुश देख कर खुश थे.

कार्यक्रम समाप्त हुआ , रमेश जी का हार्दिक धन्यवाद कर हम लोग घर लौटे.

मित्र महोदय की  पत्नि अपनी इकलौती पोती को ख़ुशी के मारे नाचता  पा कर बहुत खुश थी अतः उसने त्यौहार के अवसर पर बनाए गए विशेष पकवान खिलाकर हम दोनों को नवाज़ा.

सब कुछ अच्छे से निपट गया,बढ़िया विशेष पकवान भी पेट में पहुँच गए,परन्तु मुझे रमेश जी की अतिरिक्त गंभीर मुख-मुद्रा और उनकी, शालीनता कि प्रतिमूर्ति, पुत्रवधू की बेचैनी बेचैन किये दे रही थी.

घर पहुंचा तो मुझे अनमना सा पाकर श्रीमती जी भी कारण जानने का  आग्रह करने लगीं.

उनके आग्रह का किसी तरह निराक़रण करके मैंने रमेश जी का फोन मिलाया,और उनसे उनके घर पर उसी समय मिलने की अपनी इच्छा प्रकट की.

उन्होंने शिष्टाचारवश अपनी प्रसन्नता जताई और मुझे आने को कहा.

उनके घर पहुँच कर बिना इधर-उधर की बात किये मैंने अपने मन की बात कही.

रमेश जी बोले,''भाई,बुरा मत मानना,बात कुछ ऐसी थी कि उस समय जानबूझकर मैंने उसे बढ़ाना ठीक नहीं समझा,तुम बैठो मैं अन्दर तुम्हारे आने की खबर करता  हूँ, फिर इत्मीनान से बैठकर तुम्हें सारी बात बताता हूँ.''

''आप तक़ल्लुफ़ में ना पड़ें मैं घर से खा-पी कर चला था,यों भी त्यौहार का दिन है तो कुछ ज़्यादा ही हैवी हो चुका है.'' मैंने उन्हें रोकने की कोशिश करते हुए कहा.

''अरे यार चाय तो फिर भी चलेगी ,'' ये कहते हुए रमेश जी घर की बैठक से निकल कर ड्योढ़ी पार करते हुए घर के अन्दर चले गए.


मैं पीछे बैठा अपनी  लेखक  बुद्धि को कोसने लगा जो हर वक़्त हर किसी के फटे में टांग अड़ाए बिना नहीं मानती थी.


रमेश जी अपने हाथ में एक फ़ाइल लिए बैठक में आये और कहने लगे,''मामला ज़रा पुराना पड़ जाने की वज़ह से बहू को फ़ाइल ढूँढने में थोड़ा वक़्त लग गया,माफ़ी चाहता हूँ.'' 

कैसी फ़ाइल ?मैं समझा नहीं?

एक नीले रंग की फ़ाइल मेरे हाथ में पकडाते हुए रमेश जी मुझे समझाते हुए से बोले,''ये फ़ाइल पकड़ो और इस में नत्थी सारे कागज़ात का अच्छी तरह से अध्ययन कर लो.तुम्हारी हर जिज्ञासा का उत्तर तुम्हें इस में मिलेगा.फिर भी अगर कोई प्रश्न मन में रह जाए तो उसका उत्तर देने को मैं हाज़िर हूँ.''

ये तो काफी मोटी फ़ाइल दिख रही है, क्या है इस फ़ाइल में? आप ही बता दीजिये.

''अगर मैं आपको सारी कहानी सुनाने बैठ गया तो सारी रात भले बीत जाए  परन्तु आपके मन के प्रश्न फिर भी अनुत्तरित ही रह जायेंगे,इसलिए आराम से कुर्सी छोड़ कर सोफे पर जम जाओ,चाय आ रही है ,चाय की चुस्कियां लेते हुए शुरू हो जाओ ''

''ऐसी बात है तो अगर आपको ऐतराज़ न हो ,तो ये फ़ाइल मैं अपने साथ अपने घर ले जाता हूँ ,बिस्तर में घुस कर इत्मीनान से पढूंगा,और सुबह होते ही आपकी फ़ाइल आपको वापिस पहुंचा दूंगा.''

आप इत्मीनान से फ़ाइल पढ़िए.यहाँ बैठकर पढ़ना चाहें तो यहाँ पढ़िए ,देर-सवेर का कोई संकोच ना करें,इसे भी अपना ही घर समझें और अगर अपने ही घर फ़ाइल ले जाना  चाहते हैं तो आप मालिक हैं,हमें उसमें भी कोई ऐतराज़ नहीं .और हाँ ,फ़ाइल जब आप  मुनासिब समझें तब वापिस भिजवा दीजिएगा.
इतने में नौकर चाय और उसके साथ खाने का बहुत सा सामान लेकर आ गयाऔर मेरे लाख मना करने पर भी रमेश जी ने मुझे चाय पिलाकर  ही छोड़ा.

घर आकर मैं बिस्तर पर पहुँचने की जगह अपनी छोटी सी स्टडी में जा घुसा और बिना वक़्त गवांये फ़ाइल खोल कर पढने बैठ गया.

मैं ज्यों-ज्यों फ़ाइल पढता गया मेरी हैरानी बढती ही गई .

रात शायद मैं नौ बजे फ़ाइल खोल कर पढने बैठा था और आखिर में जब मैं फ़ाइल के हर -एक पन्ने का अध्ययन करने के बाद, फ्रेश होने के इरादे से, वाशरूम की तरफ मुड़ा तो मेरी नज़र  मेज़ पर रखी घडी पर पड़ी, सुबह होने वाली थी,घडी छः बजा चुकी थी.यानी मैं पिछले नौं घंटों से भी ज्यादा समयसे  फ़ाइल में डूबा हुआ  था.

पूरी फ़ाइल पढने के बाद मेरा मन हताशा और दुःख से भर गयाथा .मैं समझ चुका था कि क्यों  रमेश जी की पुत्रवधू उन सज्जन को देख कर बेचैन हो गई थी,और अब क्यों उन्हें फ़ाइल वापिस लेने की जल्दी नहीं थी.

फ़ाइल हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों की कतरनों से भरी पड़ी  थी ,जिन्हें बड़ी सफाई से संभाल कर फ़ाइल में लगाया गया था.कतरनों के बीच-बीच में कुछ कागजों पर बड़े सुडौल अख्यरों में कुछ नोट्स घटनाओं पर टिपण्णी करते हुए लिखे हुए थे. नोट्स शायद रमेश जी की पुत्रवधू के हाथ के लिखे हुए थे.और शायद पूरी फ़ाइल ही उनकी पुत्रवधू द्वारा तैयार की गई थी.

पूरी  फ़ाइल का ब्यौरा यदि देने बैठ गया तो यह चिट्ठा बहुत लंबा होकर कई किश्तों में बिखर जाएगा,जबकि  मैं इसे आज-अभी महिला दिवस की रात्री में पूरा करके पोस्ट कर देना चाहता हूँ.अतः संख्येप में सारी बात कहता हूँ.

फ़ाइल के अनुसार :-

नगर के जाने-माने उद्योगपति श्री हीरा लाल जो नगर में सेठ जी के नाम से ज्यादा जाने जाते थे,महिला कालेज के वार्षिक अधिवेशन में अध्यख्य रूप में आमन्त्रित किये गए थे.
कालेज की,अंग्रेजी साहित्य में, एम.ए.फाइनल की छात्रा, कु.ज्योत्स्ना जहां पढ़ाई में बहुत मेधावी थी,वहीं रूप-सौंदर्य और भरत-नाट्यम  नृत्य में भी बहुत बढ़-चढ़ कर थी.

सेठ जी की कुदृष्टि इस सौंदर्य की प्रतिमूर्ति पर पड़ी  तो वो उसे देखते ही रह गए.

सेठ जी जब कालेज के उत्सव से वापिस लौटे तो उनका कामातुर मन उस रूप सुंदरी को पाने के लिए बेचैन था.

शैतान का दिमाग,लगा तरकीबें लड़ाने.और आखिर में उन्हें एक सिक्केबंद तरकीब सूझ ही गई.

 ज्योत्स्ना शाम को नगर के नृत्य एवं संगीत विद्यालय में बच्चों को नृत्य की शिख्या देने के लिए साइकिल पर जाती थी.

दो दिन बाद रोज़ की तरह जब ज्योत्स्ना विद्यालय से लौट रही थी,फ़िल्मी स्टाइल में एक कार उसकी साइकिल की बगल से ऐसे गुजरी कि ज्योत्स्ना भर-भरा कर सड़क पर आ गिरी.उसे मामूली खरोंचें आयीं.

राह चलते लोग इकट्ठे होने लगे.कार से एक शरीफ सा दिखने वाला बुज़ुर्ग व्यक्ति निकला,उसने अपने ड्राइवर कि लापरवाही के लिए उसे काफी कोसा और इस सब के लिए सब से माफ़ी मांगी.

ज्योत्स्स्ना के बार-बार कहने के बावजूद कि उसे कोई गंभीर चोटें नहीं आई थीं,बुजुर्गवार नहीं माने.उनका ये कहना कि यदि इंजेक्शन नहीं लगवाया गया तो ये मामूली खरोंचें टिटनस जैसी खौफनाक बीमारी  भी  पैदा कर सकती थीं,मौजूद सब लोगों को जंचा. 

बुजुर्गवार ने सुझाव दिया  कि मोड़ मुड़ के मेन रोड पर थोड़ी दूर पर ही जो डाक्टर भगत राम का दवाखाना है वहाँ चले चलते हैं,ताकी ज्योत्स्ना को इंजेक्शन लगवा कर उसके घर छोड़ा जा सके.उसने वहाँ इकट्ठा  हुए लोगों से प्रार्थना की कि कुछ लोग उनके साथ डाक्टर के दवाखाने तक भी चले चलें,तो बड़ी मेहरबानी होगी.

कोई आगे ना बढ़ा.
बुज़ुर्ग ने फिर जिद की तो एक सज्जन जिनका घर डाक्टर के दवाखाने के पास था साथ चल पड़े .

ज्योत्स्ना की साइकिल कार की डिक्की में रखी गयी और ज्योत्स्ना को लेकर गाडी बाकायदा डाक्टर के दवाखाने में पहुँची.वहाँ उसको फर्स्ट एड देकर इंजेक्शन भी लगाया गया.

दवाखाने से बाहर आकर वो सज्जन भी आश्वस्त हो गयेऔर उन्होंने ज्योत्स्ना  के घर तक जाने की  बिलकुल भी ज़रुरत नहीं महसूस की.आखिर कार वाले बजुर्ग ने पूरी इमानदारी से ज्योत्स्ना का इलाज भी तो करवाया था,फिर एक शरीफ बुज़ुर्ग पर शक करने का क्या काम.

उन सज्जन ने प्यार से ज्योत्स्ना के सर पर हाथ फेरा और आशीर्वाद देकर अपने घर का रस्ता लिया.

मेन रोड पर भागती कार ज्योत्स्ना के घर की ओर न जाकर विपरीत दिशा में भागी जा रही थी ,यह बात जब तक ज्योत्स्ना की समझ में आई बहुत देर हो चुकी थी.


दस दिन नगर में खूब गुल-गपाड़ा मचता रहा, पुलिस वाले यही कहते रहे कि वो पूरी कोशिश कर रहे हैं पर कुछ हाथ ना आया.गरीब स्कूल मास्टर कि बेटी ज्योत्स्ना को ज़मीन खा गयी थी या आसमान निगल गया था .
और फिर नगर में जैसे भूचाल ही आ गया.

दसवें दिन शाम को सेठ हीरा लाल के फ़ार्म के कूएँ से बदबू आने लगी और फिर दो घंटे की मेहनत के बाद कूएँ में से पुलिस ज्योत्स्ना की फूली हुई लाश निकलवा पाई.

ज्योत्स्ना की लाश की पहचान उसके बाएं हाथ के पीछे गुदे ॐ के निशान और उसके होठों के ऊपर विधाता द्वारा जड़े तिल से हुई थी.

सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि ज्योत्स्ना के शरीर पर उसका वो सलवार-कमीज़ का जोड़ा नहीं था जिसे पहन कर वो घर से निकली थी बल्कि उसके शरीर पर सेठ हीरा लाल की धर्म पत्नि  शान्ति देवी की  सलवार-कमीज़ का जोड़ा था.ये कपडे सेठ जी की पत्नि के ही थे इस बात का पता कपड़ों पर लगाए जाने वाले लांड्री के निशान से लगा था.

सेठ हीरा लाल को ज्योत्स्ना की हत्या की साज़िश में शामिल होने के शक के आधार पर गिरफ्तार ज़रूर किया गया,परन्तु अदालत में सेठ जी के खिलाफ पुलिस ने कोई ठोस मामला नहीं पेश किया.रमेश जी की पुत्रवधू अपनी प्रतिभाशाली विद्यार्थी के लिए जितनी हो सकी, अपने पति को साथ लेकर, भागदौड करती रही.पर कुछ ना हो सका. 

ज्योत्स्ना की आत्मा को इन्साफ नहीं मिला.ज्योत्स्ना के हत्यारों को कोई सज़ा नहीं मिली.

सेठ हीरा लाल अदालत से ससम्मान बरी हो गए.

समय बीतता गया.नगरवासी पुरानी बातें भूलते गए,और  सेठ हीरा लाल पुनः  प्रतिष्ठित हो गए.

तो ये कारण था कि एक शरीफ खानदान की बहू सेठ हीरा लाल को स्टेज पर देख कर नफरत से बेचैन हो गयी थी.

आज उस दशहरे को गुज़रे बहुत साल बीत गए हैं.

सेठ हीरा लाल जी राज्य सरकार में मंत्री के पद पर महिमामंडित हैं.

रमेश जी की पुत्रवधू अपने कालेज की प्रिंसिपल बन चुकी हैं.

घर का पुराना खिदमतगार रग्घू अभी-अभी मुझे एक सुन्दर-सुनहरी अख्यरों  में छपा निमंत्रण-पत्र थमा गया है.

आज नगर के महिला कालेज में  महिला-दिवस, एक उत्सव के रूप में   मनाया जा रहा है.

महामहिम मंत्री सेठ हीरा लाल जी विशेष अतिथि होंगे.

निमंत्रण -पत्र  महिला कालेज की प्रिंसिपल रमेश जी की पुत्रवधू की ओर से 

हस्ताख्यरित है. 

क्या आज भी वो बेचैन होंगी ?

आज फिर मेरा लेखक मन जानने को बेचैन है.

इति ?  
       



   


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें