शुक्रवार, 25 मार्च 2011

हार

 ( मुझे भगत जी सिरीज़ की दूसरी कड़ी प्रस्तुत करनी थी, आधी से ज़्यादा लिख भी चुका हूँ ,परन्तु कल कुछ ऐसी बातें हो गयीं कि मुझे आज से पैंतीस साल पुरानी एक घटना याद आ गई और मैं भगत जी की अगली कड़ी पूरी करने से पहले इसे लिखने बैठ गया.शायद कोई इसे पसंद करे. बस एक ही डर है कि कहीं कोई गलत अर्थ ना निकाल ले. )

ये बात सन 1975 की है.

मैं अपनी नौकरी के साथ-साथ एक एडवांस-ट्रेनिंग कोर्स भी कर रहा था जिसकी  क्लासिस हफ्ते में तीन दिन शाम को होती थीं जो रात नौ बजे तक चलतीं थीं . ट्रेनिंग-इंस्टिट्यूट कनाट-प्लेस में सुपर बाज़ार के सामने वाले ब्लाक में पहली मंजिल पर था.

 नीचे लीडो रेस्टोरेंट था,जिसमें केबरे डांस हुआ करते थे.

कैबरे डांस देखने के शौकीन,उन दिनों सस्ते ज़माने में,जब हमारी तनख्वाह सिर्फ 303 रूपये प्रति माह होती थी,और दिल्ली की सड़कों पर पीने के ठन्डे पानी का एक गिलास सिर्फ पांच पैसे में मिलता था,बीस रूपये रेस्टोरेंट की एन्ट्री फीस ख़ुशी-ख़ुशी भरते थे.


हम लोग उन दिनों  कालका जी में रहते थे.मैं ऑफिस से कनाट-प्लेस के लिए अपने लेम्ब्रेटा स्कूटर पर सीधे ही निकल जाता था. हालांकि मेरा स्कूटर चार साल पुराना था, पर मैं उसे हमेशा एकदम चाक-चौबंद रखता था ,एक किक लगाओ खट्ट से स्टार्ट , जिसे हम उन दिनों बड़े गर्व से हाफ-किक स्टार्ट स्कूटर कहते थे.


जिस वाकये का जिक्र मैं करने जा रहा हूँ उसे याद करके मुझे आज भी , इंसान की फितरत पर हैरानी ही होती है . 


उन दिनों दिल्ली की सड़कों पर ज़्यादा भीड़-भाड़ नहीं होती थी.रात के दस बजते-बजते तो दिल्ली सो ही जाया करती थी.


अक्टूबर का महीना था, नजदीक आती सर्दी के क़दमों की आहट सुनाई देने लगी थी.


मैं और मेरा एक और साथी क्लासिस ख़त्म होने के बाद जीना उतर कर नीचे आये. लीडो  की खिड़की पर एन्ट्री टिकट  लेने वालों का एक छोटा सा झुण्ड खडा था.तकरीबन आठ-दस लोग रहे होंगे. रोज़ की तरह इस वक़्त सड़क अकेली पड़ी थी.बीच-बीच में कोई इक्का-दुक्का वाहन उसका अकेलापन झुठलाता हुआ घर्र से निकल जाता था.  


हम दोनों ने बिल्डिंग के पीछे बने स्कूटर स्टैंड से अपने-अपने स्कूटर उठाये और सड़क पार करके पान वाले के खोखे के सामने आन खड़े हुए.


सुपर-बाज़ार की बगल में टेलीफोन एक्सचेंज का भवन है, टेलीफोन एक्सचेंज से जुडी फायर ब्रिगेड की बिल्डिंग है और फायर ब्रिगेड की बगल से होती हुई एक पतली गली गयी है. ( ये गली आगे किधर पहुंचाती है, इस चक्कर  में मत पड़िए,हम कौनसा दिल्ली का जुगराफिया पढने बैठे हैं. ). फायर ब्रिगेड  के दो बड़े-बड़े  गेट हैं, एक  कनाट-प्लेस  की  तरफ और दूसरा  बगल वाली पतली गली की  तरफ. दोनों दरवाजों पर बंदूकधारी  सिपाही चौबीस घण्टे पहरा दे रहे होते हैं. 


पान वाले का खोखा टेलीफोन-एक्सचेंज की दीवार से जुडा इस के गेट के साथ ही था.


क्लासिस ख़त्म होने के बाद घर जाते वक़्त पान वाले का ये खोखा हम दोनों का पक्का अड्डा था.मेरा मित्र हर बार पान वाले से एक सिगरेट खरीदता और स्टैंड पर खड़े स्कूटर पर बैठ कर इत्मीनान से सिगरेट के हलके-हलके कश लेता हुआ धुम्रपान का आनन्द लेता, और मैं उसे आनन्द लेता देख खाली बैठा आनन्दित होता रहता.  


दस-पंद्रह मिनट के इस अन्तराल में हम दुनिया-जहान की बातें करते और सिगरेट ख़त्म होने के साथ अपनी मीटिंग ख़त्म करके स्कूटर को किक मारते और घर की ओर वापिस चल देते.


काफी दिन ये सिलसिला निर्विघ्न चला.


पर फिर एक दिन वो  घटना घट गयी, जिसका जिक्र करने मैं बैठा हूँ . हुआ यूं कि......


हम दोनों अपने-अपने स्कूटर पर बैठे हुए अपने-अपने तरीके से आनन्द ले रहे थे .मेरा मित्र कभी आस्ट्रेलिया और कभी अफ्रीका के नक्शे की शक्ल जैसा धुआं अपने मुंह से उगल रहा था, इतने में एक अच्छे-खासे तन्दरुस्त सेहत वाले सरदार जी, जो चालीस-पैंतालीस के पेटे में रहे होंगे , अपने स्कूटर पर अपनी पत्नी के साथ वहाँ पहुंचे. हम दोनों से थोड़ा सा आगे करके उन्होंने अपना स्कूटर स्टैंड पर लगाया और अपनी पत्नी को प्रतीख्या करता छोड़ , खुद भारतीय परम्परा को निभाते हुए , खोखे की बगल में अंग्रेजों के ज़माने के, नीम के पुराने पेड़ को सींचने के शुभ कार्य को करने के लिए जा खड़े हुए.


मेरा मित्र सरदार जी के इस कारनामे को देख हँस पडा.अभी मेरे मित्र की मुस्कराहट आधे रास्ते में ही थी कि,


'' पकड़ो-पकड़ो , मेरा हार ले के भाग गया, सरदार जी , पकड़ो!!!''


सरदार जी क्या करते , वो तो उस वक़्त कुछ और ही पकड़े खड़े थे.सरदार जी का आधा पेशाब नीम पर और आधा पैंट पर, हाथ से अपने उत्तम अंग को  पैंट के भीतर घुसेड़ते भागे, लीडो के आगे खड़े तमाशबीन खड़े तमाशा देखते रहे, और मैं, 


मैं बता नहीं सकता कि ये सब कैसे और क्योंकर  हुआ, पर अचानक ही उस महिला की गुहार सुनकर मैं जो  एक पल पहले  अपने स्कूटर पर बैठा हँस रहा था दूसरे ही पल, सरदार जी की पत्नी का हार , उनके गले से झपट कर भागते , बदमाश  के पीछे अपने स्कूटर पर भागा.


वो बदमाश दौड़ कर फायर ब्रिगेड के साथ वाली गली में  लुप्त हो गया.मैंने अपने स्कूटर पर भाग कर उसे फायर ब्रिगेड के गली वाले दरवाज़े के सामने पहुँचते तक ही जा लिया . 


मेरे स्कूटर की आवाज़ से ही वो बदमाश ये समझ गया कि वो मेरे से और दूर  नहीं भाग पायेगा,तो फायर-ब्रिगेड के गेट के सामने पहुँच कर वो पलट कर खडा हो गया.


दोनों पैरों को चौड़ा कर, दायें हाथ में आठ-इंच लम्बे फल वाले रामपुरी चाक़ू को लहराते हुए,अपने बदन को दोनों पैरों पर एक ओर से दूसरी ओर झुलाते हुए वो बड़ी खतरनाक  मुद्रा बनाए मेरे सामने खडा था ,हार उसने दौड़ते -दौड़ते  ही अपनी पैंट की दायीं जेब में डाल लिया था , जहां से वो थोड़ा बाहर को लटका हुआ साफ़ नज़र आ रहा था.


ये बदमाश कोई बीस-पच्चीस साल के बीच की उम्र का मंझौले क़द का हट्टा-कट्टा नौजवान था.उसकी  खड़े होने की मुद्रा और चाक़ू को लहराने का अंदाज़, उसके खतरनाक इरादों को साफ़ जाहिर कर रहे थे.


'' भाग जा,नहीं तो चीर के रख दूंगा, '' वो अपने दांत भींच कर मेरी तरफ एक कदम बढ़ता हुआ फुफकारा.


उसका अंदाज़ बता रहा था कि वो जो कुछ कह रहा था उसे कर गुजरने में उसे कोई हिचकिचाहट नहीं होने वाली थी.


इस बीच सरदारजी और उनकी पत्नी भी मेरे से कुछ दूर मेरे पीछे आन खड़े हुए थे. सरदार जी की पत्नी उस बदमाश को अपनी विनयशील भर्राई हुई आवाज़ में प्रार्थना किये जा रही थी, '' वे भ्रावा, साडे ते रहम कर , मेरा हार मैनू दे-दे ,तेरी बौत मेरबानी होउगी ''. 


और सरदार जी अपनी पत्नी की बात पर पालिश सी चढाते हुए हाथ जोड़ कर उस के सुर में सुर मिलाते हुए बोले जा रहे थे ,'' देख उस्ताद, जो सौ पचास लेने हों ले-ले, पर भाई मेरे, ये हार हमें  वापस दे-दे .''


उधर वो बदमाश इन सब बातों और सामने पंद्रह फुट दूर फायर ब्रिगेड के दरवाज़े पर खड़े बंदूकधारी से बेपरवाह हमें अपने चाकू से चीर देने को आमादा खडा था.


उस बदमाश के चेहरे के बदलते हाव-भाव से मुझे लगने लगा कि ये अब चाक़ू से वार  ज़रूर करेगा तो मैंने बहुत आराम से बिना बदमाश के चेहरे से निगाहें हटाये धीरे से अपने बायें हाथ से स्कूटर का क्लच दबाया और बिना उस बदमाश की निगाहों में आये स्कूटर को फर्स्ट गियर में डाला और इस से पहले कि वो बदमाश कुछ समझ पाता मैंने अपनी दायीं मुट्ठी से स्कूटर के इंजन को फुल रेस दी और बायें हाथ से दबाये हुए क्लच के लीवर को एक-दम से छोड़ दिया.


जो कुछ भी हुआ वो इतनी तेज़ी से हुआ कि जब तक वो बदमाश सम्भल पाता वो ज़मीन पर पडा धूल चाट रहा था.


स्कूटर का अगला पहिया ज़मीन से ऊंचा उठा और मुझे लिए-लिए बड़ी तेज़ी से बदमाश कि टांगों के बीच में जा कर भड़ाक से टकराया.


टक्कर इतने ज़ोरों की थी कि मेरी तैयारी के बावजूद मैं स्कूटर से उछल कर सड़क के किनारे उगी हुई झाड़ियों  में जा गिरा और स्कूटर उस बदमाश को लिए-दिए उस के पेट पर चढ़ा हुआ गुर्रा रहा था और आगे घिसटने की कोशिश में थोड़ा घूम गया था.इस सब में बदमाश की बाईं आँख  के नीचे स्कूटर के हेंडल से ऐसी ज़ोरों की चोट आई थी की वहाँ से खून बहना शुरू हो गया था.


सरदार जी ने यह नज़ारा देखा तो कूद कर आगे आये और मुझे झाड़ियों में से निकालने की जगह तेज़ी से बदमाश के पास पहुंचे और उसकी पैंट की जेब से हार निकाल  कर अपनी पत्नी के पास पहुंचे.


सरदार जी महाराज तेज़ी से बदले इस माहौल से और जल्दी से जल्दी वहाँ से निकल लेने की  अपनी कोशिश में इतने बौखलाए हुए थे कि उन से स्कूटर को स्टार्ट करने के लिए ठीक से किक भी नहीं मारी जा रही थी,ज्यों-त्यों करके उन्होंने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और अपनी पत्नी को पीछे बिठा वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गए. मैं उनका मददगार पीछे मरा या जिया इसकी उस रब्ब के बन्दे ने जानने की रत्ती भर भी कोशिश नहीं की.उसका काम वाहगुरू सच्चे बादशाह ने बहुत अच्छी  तरह और बड़ी खूबसूरती से निपटा दिया था, अब उसे किसी दूसरे के मरने-जीने की परवाह नहीं थी.


मैं हैरान था और आज तक हैरान हूँ कि वो कैसा गुरु का सिख था जो अपने मददगार को बीच मंझधार में छोड़ कर भाग खडा हुआ था,जबकि गुरु का सिख तो दूसरों की मदद करने में अपनी जान की बाज़ी लगाने से भी नहीं हिचकिचाता. 


मैं हांफता-कांखता बड़ी मुश्किल से झाड़ियों में से बाहर निकला.किसी तरह जोर लगा कर और भी मुश्किल से स्कूटर को सीधा किया,और उसे स्टैंड पर खडा किया.


वो बदमाश लड़का अपने दोनों हाथों से  अपनी बाईं आँख को दबाये चिल्लाये जा रहा था ,''मार दिया रे, मेरी आँख फोड़ दी रे ,'' वगेरह-वगेरह 


उसकी आँख-वाँख कुछ नहीं फूटी थी,पर आँख के नीचे लगी गहरी चोट से बहते खून का वो भरपूर फायदा उठाना चाह रहा था.


इतने में मेरे मित्र की आवाज़ आई ,'' भाई साहब, आ जाओ , खामखा अपना वक़्त और ज़्यादा बर्बाद मत करो , चलो यहाँ से ''.


मैंने अपना स्कूटर स्टार्ट किया, जो कि इस बार आधी किक में नहीं, दस-पंद्रह किक मारने के बाद कहीं जाकर बड़ी मुश्किल से  स्टार्ट हुआ.


मैं स्कूटर लिए  पंद्रह फुट दूर खड़े उस बंदूकधारी के पास पहुंचा और उससे कहा ,'' तेरे सामने इतना बड़ा हादसा हो गया और  तू बुत बना खडा हुआ तमाशा देख रहा है,अगर वो बदमाश मुझे मार डालता तो तू क्या करता ?''


बंदूकधारी बोला, '' जाओ बाबू जी , खैर मनाओ और अपने घर जाओ ,मुझे लेक्चर देने कि ज़रुरत नहीं ,अरे वो सरदार तो आपकी मदद को आगे ना बढ़ा जिसके लिए आपने अपनी जान खतरे में डाली,मैं तो फिर अपनी ड्यूटी  पर खडा हूँ, फ़ालतू के पंगे लेने के लिए नहीं ''.


मैंने उससे इसके आगे कोई बात करना फजूल समझा और वापिस घर की तरफ चल दिया. थोड़ी दूर जाकर ही मैं रुक गया,मेरी आत्मा ने ये मंजूर ना किया की मैं उस बदमाश को यूं ज़ख़्मी हालत में बेसहारा छोड़ कर चल दूं,चाहे वो कितना भी बदमाश क्यों ना हो मुझे लगा की मुझे उसको डाक्टरी सहायता ज़रूर दिलवानी चाहिए.


मुझे रुकता देख मेरे मित्र ने रुकने का कारण पूछा.मेरे द्वारा मेरा विचार जान कर मेरा मित्र चिढ गया और बोला, '' आपका  दिमाग  खराब हो गया है क्या , पहले ही फजूल के चक्कर  में पड़कर खामखाह इतना टाइम बर्बाद हो चुका  है ,अब रुकिए  नहीं और घर चलिए .''


मैंने कहा,''जहां इतनी देर हो गई है , थोड़ी सी और सही ,पास में ही तो विलिंग्टन हस्पताल है ,वहाँ उसे छोड़कर हम अपने घर को चल पडेंगे ''.


पर मेरे मित्र को मेरी बात बहुत नागवार गुजरीऔर वो मेरे से बिना कुछ और बात किये मुझे वहीं सड़क पर ही छोड़ कर अपने घर की ओर लौट पडा.


 मैं वापिस घटना स्थल पर पहुंचा. वो ज़ख़्मी बदमाश वहाँ से गायब था.


 जब मैंने उस के बारे में बंदूकधारी से पूछा,तो वो हंसने लगा और बोला, ''बड़े भोले हो बाबू जी , अरे वो तो तुम्हारे जाते ही यहाँ से भाग लिया था.मामूली चोट थी , जान छुडाने के लिए खामखाह ड्रामे कर रहा था.''


खैर जो भी हो, कम से कम मेरी आत्मा पर से तो बोझ हट गया  था.


मैं ख़ुशी-ख़ुशी अपने शरीर पर आईं खरोंचों को लिए घर पहुंचा.




( यहाँ मैंने न तो अपने कार्यालय का नाम लिया है और ना ही अपने मित्र का.यह सब मैंने अपने मित्र को शर्मिन्दा होने से बचाने को किया है जो ज़रुरत के वक़्त सिर्फ तमाशबीन बना खडा रहा. )




 यह घटना हमें क्या कहती है ?  क्या मैं गलत था ? क्या आइन्दा मेरे बच्चे 
किसी की मदद करना बेवकूफी भरा काम समझेंगे ? या ये सारे सवाल सिरे से ही बेमानी हैं ?


 मुझे पाठकों की प्रतिक्रया की प्रतीख्या रहेगी.




धन्यवाद.


























3 टिप्‍पणियां:

  1. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , हिंदी ब्लॉग लेखन को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सार्थक है. निश्चित रूप से आप हिंदी लेखन को नया आयाम देंगे.
    हिंदी ब्लॉग लेखको को संगठित करने व हिंदी को बढ़ावा देने के लिए "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की stha आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
    डंके की चोट पर

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  2. वाकई यादगार घटना । आपकी जीवटता प्रशंसनीय रही ।

    शुभागमन...!
    कामना है कि आप ब्लागलेखन के इस क्षेत्र में अधिकतम उंचाईयां हासिल कर सकें । अपने इस प्रयास में सफलता के लिये आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या उसी अनुपात में बढ सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको 'नजरिया' ब्लाग की लिंक नीचे दे रहा हूँ, किसी भी नये हिन्दीभाषी ब्लागर्स के लिये इस ब्लाग पर आपको जितनी अधिक व प्रमाणिक जानकारी इसके अब तक के लेखों में एक ही स्थान पर मिल सकती है उतनी अन्यत्र शायद कहीं नहीं । प्रमाण के लिये आप नीचे की लिंक पर मौजूद इस ब्लाग के दि. 18-2-2011 को प्रकाशित आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का माउस क्लिक द्वारा चटका लगाकर अवलोकन अवश्य करें, इसपर अपनी टिप्पणीरुपी राय भी दें और आगे भी स्वयं के ब्लाग के लिये उपयोगी अन्य जानकारियों के लिये इसे फालो भी करें । आपको निश्चय ही अच्छे परिणाम मिलेंगे । पुनः शुभकामनाओं सहित...

    नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव.

    दूर रहें इस सोच से - मुझसे नहीं होगा !

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  3. आपके प्रश्नों का उत्तर देने से पहले हम इसी घटना को एक दूसरे पहलू से देखते हैं, मान लीजिये कि आप एक कमज़ोर, बीमार बूढी स्त्री हैं जिसके आभूषणों के लिये एक ऐसा ही उचक्का उस पर छुरे से वार करने वाला है। वहाँ पर सिर्फ एक व्यक्ति और है, जिसकी सोच/प्रतिक्रिया आपके जान-माल की रक्षा भी कर सकती है या सब कुछ समाप्त कर सकती है। माल तो जायेगा ही, आप सदा के लिये अपाहिज़ हो सकते हैं। ज़रा सोचकर बताइये कि उस तीसरे व्यक्ति को आप किस रूप में देखना पसन्द करेंगे? अपने जैसा मानव या उस उचक्के या सरदार जैसा कायर और अहसानफरामोश?

    बेशक़ आप गलत नहीं थे। गलत था वह उचक्का, वह सरदार, वह बन्दूकची, आपका दोस्त और वे सारे तमाशबीन। ये सब बिना रीढ के रेंगने वाले पशुओं जैसे हैं।

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